Book Title: Nandanvana
Author(s): N L Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 562
________________ (542) : नंदनवन भारत में रहकर मन में आता है कि जिसके पास समुचित आय-व्यय के साधन हैं, वह सुखी है और ऐसे समाज में दोष और अपराध बिल्कुल नहीं होने चाहिये। भारत में गरीबी है, असन्तोष है, अपर्याप्त आय है, इसलिये बहुत से दोष और अपराध सम्भावित हैं, पर उनकी संख्या उसकी धार्मिक प्रवृत्ति के कारण बहुत कम है। लेकिन यदि आप ब्रिटेन के 'डेली एक्सप्रेस, 'डेली मेल' जैसे समाचार पत्र (जिनकी ग्राहक संख्या पच्चीस लाख तक जाती है) और स्थानीय प्रातः एवं सायंकालीन समाचार पत्र देखें तो उनसे पता चलता है कि ब्रिटेन में अपराधी की संख्या कितनी अधिक है ? क्रिसमस के दिनों में, घने कुहरे के दिनों में बैंकों में डकैतियां आम हैं, सोने से लदे ट्रकों का गायब हो जाना, सरकारी कोष को लूटना जैसी दिलेरी घटनाओं के अतिरिक्त हत्यायें भी बहुत साधारण हैं। यौन-अपराध भी पर्याप्त मात्रा में हैं। धोखेबाजी भी खूब है। भिखमंगी को हम सामाजिक अपराध मानते हैं। वह वहां बहुत कम है। इन समाचार पत्रों को पढ़कर ऐसा लगता है कि हमारा समाज इन मामलों में इनसे तो अच्छा ही बैठेगा और तब हमें अपनी धार्मिक शिक्षा की प्रशंसा करनी पड़ती है। जीविकोपार्जन के श्रम के अतिरिक्त समय में मन और शरीर को हल्का करने के लिये मनोरंजन बहुत आवश्यक है। भारतीय ग्रामों में मनोरंजन के साधन नगण्य है। रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, नाच-गान, सांस्कृतिक आयोजन आदि नगरों में हर समय होते हैं। बहुत से परिवारों के लिये लन्दन में टेलीविजन मनोरंजन का काम करता है। काफी लोगों को शराब-गृह इसके अन्यतम साधन है। सप्ताहांत में कुछ घुमक्कड़ी और नाच गान प्रमुख मनोरंजन है। नाच-गान वहां प्रायः सभी को आता है। यह नाच-गान जनसंस्कृति का द्योतक है। वाले या आपेरा आदि विशेषज्ञों के लिये हैं। यह नाच-गान वाला समाज ही बन गया है। इसके कारण यहां सदैव व्यक्ति नाचता-गाता रहता है। इस प्रवृत्ति का ही यह सामर्थ्य है कि आज यहां बालक और वृद्ध के सामान्य व्यवहार में कोई अन्तर नहीं कर सकते। हां, यहां के गाने भी भारत के अधिकांश निराशावादी गानों से भिन्न होते हैं। यहां के गानों में वर्तमान जीवन व उसकी उमंगे झलकती हैं। इन गानों का भूत और भविष्य में उतना लगाव नहीं है। अतः उनमें न केवल गाते समय ही आनन्द आता है, अपितु उन की मीठी लहर सदैव मन में समायी रहती है। यह सही है कि यहां की यह गायन कला भारत से बिल्कुल भिन्न होते हुये ग्रामीण भारत की लोक संगीत पद्धति के अनुरूप है। भारत की लय और तानों की मधुरता के आदी श्रवण यन्त्रों के लिये यह काफी दिनों तक फूहड़ जैसी लगती है। पर बाद में यह उतनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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