Book Title: Nandanvana
Author(s): N L Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 585
________________ परिशिष्ट- 3 जीवन चित्र 1. अध्ययनशीलता वे अनेक प्रगतिशील एवं स्वतन्त्र विचारकों के लेखों तथा सम्पर्क से अपने अध्ययन - काल में ही प्रभावित हुए थे । फलतः वैज्ञानिक मनोवृत्ति के साथ अध्ययनशीलता एवं विश्लेषणपरकता के गुणों का पल्लवन उनमें असाधारण रूप से हुआ है। 2. प्राचीन एवं नवीन के समन्वय के प्रतीक वे 'पुराणभित्येव न साधु सर्वम्' की धारणा से सहमत हैं और आचार्य सिद्धसेन के इस मत के समर्थक हैं कि प्राचीन की परीक्षा करना चाहिये और उसे आधुनिक रूप में प्रस्तुत करना चाहिये। साथ ही, नवीनता का भी आश्रय लेना चाहिये जिससे प्राचीन मान्यताओं में युगानुरूपता आ सके। उनका समग्र लेखन इसी प्रवृत्ति का प्रतीक है। 3. राष्ट्रीयता की प्रवृत्ति आपका मत है कि भारतीय संस्कृति विश्व की एक उत्कृष्ट मार्गदर्शक संस्कृति है । उसका संवर्धन एवं विश्वीकरण वर्तमान तनावपूर्ण जीवन को अधिक सुखमय बना सकता है । फलतः वे प्रक्रम्भ से ही राष्ट्रीयता से ओतप्रोत रहे हैं। उन्होंने 1942 के स्वतन्त्रता आन्दोलन में, अपने बचपन में ही, सक्रिय भाग लिया और 1962 में तो उन्होंने विदेश में रहते हुए ग्लास्गो की भारतीय समिति के मंत्री के रूप मे भारत-पाक युद्ध के समय पर्याप्त धनराशि एकत्र कर भारत भेजी । 4. जैन संस्कृति का संवर्धन • आप मानते हैं कि विश्व के अनेक धर्मों की तुलना में जैनधर्म में वैज्ञानिकता एवं मनोवैज्ञानिकता पर्याप्त मात्रा में है। यह भक्तिवाद और बुद्धिवाद- दोनों का समन्वय कर नयी जीवन-शैली को प्रेरित करता है। इसी दृष्टि से उन्होंने प्रारम्भ से ही जैन धर्म के सार्वजनिक संवर्धन का काम किया है। वे अनेक संस्थाओं एवं आयोजनों के कर्णधार रहे। विदेश में भी वे 'जैन मिशन' के संवाददाता रहे, अनेक व्यक्तियों को जैनधर्म से परिचय कराया और बानवरी (यू. के.) कोर्ट से पूर्व - स्थापित जैन लाइब्रेरी की डिपोजिट राशि भारत भिजवाई। उन्होंने आ. बाबू कामता प्रसाद जी द्वारा प्रवर्तित बडगोडेस वर्ग के सार्वजनिक पुस्तकालय में जैन- विद्या की पुस्तकों को सुव्यवस्थित किया। आपने लंदन में आयोजित प्रयोगशालाओं में होने वाले पशुओं के प्रति क्रूर व्यवहारों के विरोधी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन में भी दो भाषण दिये। उसके बाद से तो वे निरन्तर देश-विदेश में जैन संस्कृति के संवर्धन में काम करते रहे जो आज भी जारी है। 5. लेखन की विविधा धर्मशास्त्री और रसायनज्ञ होने के कारण उनके लेखन मे पर्याप्त विविधता रही है। उन्होंने रसायन विज्ञान से सम्बन्धित तो कम ही लेख (शोध और लोकप्रिय) लिखे, पर जैन धर्म में वर्णित भौतिक और आध्यात्मिक जगत् से सम्बन्धित लगभग बीस विषयों पर 175 शोधलेख एवं लोकप्रिय लेख लिखे हैं। उन्होंने जैन विद्याओं से सम्बन्धित 10 कृतियों को स्वयं लेखन तथा 2 कृतियों में लेखन-सहयोग दिया। आजकल वे बुद्धिवादी जैन ग्रंथों के अंग्रेजी अनुवाद के कार्य में लगे हैं। धवला -1, सत्प्ररूपणा - सूत्र, जैन भारती, राजवार्तिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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