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(544) : नंदनवन
यह पाठ्यक्रम प्रतिवर्ष संशोधित किया जाता है और प्रत्येक विषय को नवीनतम रूप तक बताया जाता है। वहां बहुविषयज्ञता की मान्यता नहीं है। पर जो भी थोड़ा पढ़ाया जाता है, उसकी यथाशक्य पूर्णज्ञता पर ध्यान दिया जाता है। विश्वविद्यालयीन स्तर पर यहां विवरणात्मक शिक्षण नहीं, सैद्धान्तिक एवं बौद्धिक शिक्षण पर जोर दिया जाता है। उदाहरणार्थ, रसायन शास्त्र के प्रथम वर्ष में यहां उष्मागतिकी के सैद्धान्तिक पाठ से अध्यापन प्रारम्भ होता है, जबकि हमारे यहां इसका प्रारम्भ प्रथम उपाधि के अंतिम वर्ष या एम.एस-सी. (पूर्व) में यह पढ़ाया जाता है। फलतः जहां ब्रिटेन का प्रथम वर्षीय विद्यार्थी तथ्यों को सैद्धान्तिक स्तर पर लेकर अपनी बुद्धि की कुशलता का सदुपयोग करता है, वहां भारत का प्रथम वर्षीय विद्यार्थी कोरे विवरणात्मक तथ्यों को अपनी स्मृति-कोष्ठ में डालकर अपने बुद्धि के विकास को कुंठित-सा करने की दिशा में अग्रसर होता है। चार वर्ष की इस प्रक्रिया के बाद जब भारतीय विद्यार्थी का सैद्धान्तिक बुद्धिवाद से पाला पड़ता है, तो वह कुछ परेशान हो जाता है। इसके विपरीत, ब्रिटेन का विद्यार्थी अपने कुशाग्र बुद्धिबल के आधार पर प्रचलित सिद्धान्तों की आलोचना में रस लेकर नवीन खोजें करने की ओर प्रेरित हो उठता है। यह भी स्पष्ट है कि भारत में प्रथम उपाधि के लिये 14 वर्ष की शिक्षा होती है, और ब्रिटेन में 15-16 वर्ष लगते हैं। यह 1-2 वर्ष का अन्तर उपाधि प्राप्त व्यक्ति के विकास का एक महत्त्वपूर्ण समय होता है। भारत में शिक्षा के पुनर्गठन पर जो विचारणायें या कार्य हुये हैं, उनमें अब तक प्रथम उपाधि से इस दोष को दूर करने की बात नहीं आ पाई है। हां, त्रिवर्षीय पाठ्यक्रम अवश्य लागू हुआ। इसमें थोड़ी असुविधा ही और बढ़ी। अब पुनः चर्तुवर्षीय पाठ्यक्रम आ रहा है। विदेश में प्रथम उपाधि के इस समय अंतर से भारत की प्रथम उपाधि समकक्ष नहीं मानी जाती। यही कारण है कि अब तक भी, यहां के एम.ए., एम.एस-सी. उत्तीर्ण व्यक्ति ही वहां के बी.ए., बी.एस-सी. विद्यार्थी के समान सीधे डाक्टरेट में प्रवेश पाते हैं। यह स्पष्ट ही 1-2 वर्षों की भारतीयों की हानि है। इस समकक्षता के अभाव में कई भारतीय विद्यार्थियों पर बहुत ही मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है और वह भारतीय शिक्षा पद्धतियों के कर्णधारों पर खीझ-सा उठता है। वर्तमान में शिक्षा पद्धति को समकक्ष बनाने के लिये यह नितान्त आवश्यक लगता है कि 11 वर्ष के माध्यमिक शिक्षण के बाद कम से कम चार वर्ष में पहली उपाधि मिले। हां, यह सही है कि तकनीकी इंजीनियरिंग की प्रथम उपाधि की मान्यता पूरी है, क्योंकि वह उक्त मत को पूरा करती है। कला व विज्ञान के विषयों में भी इस प्रकार के उपाधि के प्रयोग से हम कम से कम एक वर्ष की बी.ए. पास विद्यार्थियों की बेकारी की समस्या से भी बच जायेंगे।
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