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पर्यावरण और आहार संयम : (479)
तथा जनसख्यां वृद्धि को सम्बन्धित कर ग्राफित किया है (चित्र 3), जिससे पता चलता है कि जब प्रकृति की क्षमता अधिकतम सीमा पर आ जाती है, तो उसके तीन प्रकार के प्रभाव सम्भावित हैं :
चित्र 3. जनसंख्या एवं क्रान्तिक उत्पादन क्षमता
उत्पादन क्षमता
चित्र 3 अ चित्र 3 ब जनसंख्या वद्धि का समय चित्र 3 स
1. अधिकतम क्षमता सीमा पर जनसंख्या स्थिर हो जाये। 2. अधिकतम क्षमता सीमा पर जनसंख्या कुछ समय अस्थिरता के दौर से
गुजरे और बाद में स्थिर या कम हो जाये। 3. अधिकतम क्षमता सीमा पर प्रकृति की उत्पादक क्षमता कम हो जाये
और जनसंख्या कम होने लगे। तीनों ही दशाओं में जनसंख्या नियंत्रण आवश्यक है। इससे तज्जन्य प्रदूषण भी कम होने लगेगा। फलत: पर्यावरण-प्रदूषणके कुछ अंश को कम करने के लिये जनसंख्या संयमन अनिवार्य है। 2. औद्योगीकरण और उसका संयमन
जनसंख्या वृद्धि के प्रभावों को निरस्त करने में औद्योगिक क्रान्ति ने बड़ा योगदान दिया है। इस युग के पूर्व मनुष्य प्रकृति का एक घटक था, पर इस युग से वह प्रकृति का विजेता बन गया। कई धर्मों में पर्यावरण के सभी घटक देव कुल में आये और पूज्य बने। उनका संरक्षण और सेवन ही उनका धर्म बन गया। लेकिन ईसाई संत पाल ने प्रकृति को मानव का सेवक बताया जिससे पश्चिमी जगत् प्रकृति के दोहन ओर उस पर विजय के अभियान में लगा रहा और भौतिक समृद्धि के ऐसे बिन्दु पर अब पहुंच गया है जहां से प्रत्यावर्तन या स्थिरीकरण के सिवा कोई चारा नहीं बचा दिखता। औद्योगिक क्रान्ति का युग प्राकृतिक प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप का प्रतीक है। इस युग में हरित क्रान्ति के बीज बोये, प्रकृति के भंडारों के अधिकाधिक मात्रा में दोहन के उपाय किये और प्राकृतिक पदार्थों के बदले में विविध कोटि के संश्लेषित पदार्थ (वस्त्र, रबर, प्लास्टिक, औषध, रंजक द्रव्य, कागज, खाद,
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