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(480) : नंदनवन
कीटाणुनाशक, तेल और गैस आदि) दिये। इनकी कोटि की उत्तमता भी पाई। इस कला से मनुष्य ने अपने सुख-संवर्धन में काफी प्रगति की है एवं उसने औद्योगीकरण की दर को अपनी प्रगति का मानदंड माना।
लगभग दो सदियों तक तो वह अपने उस स्वप्निल संसार में खोया रहा, क्योंकि प्रकृति और पर्यावरण औद्योगिक अपशिष्टों को या तो अपने में अवशोषित करते रहे या फिर पुनश्चक्रित करते रहे। वर्धमान औद्योगीकरण और उसकी विविधता के कारण पिछले अनेक दशकों से प्रकृति की यह क्षमता निरन्तर हीयमान होती रही है और अब जल, वायु मिट्टी एवं क्षुद्र प्राणी-सभी इन अपशिष्टों के विषाक्त प्रभावों से आपन्न हो रहे हैं। इन अपशिष्टों की निम्न कोटियां हैं1. विभिन्न उद्योगों में प्रयुक्त चिमनी के गैस (co,com,sor,आदि) 2. यातायात वाहनों से जल, थल एवं आकाश में उत्सर्जन गैस। 3. यातायात एवं अन्य साधनों से ध्वनि प्रदूषण। 4. न्यूक्लीय उपकरणों एवं विस्फोटों से उत्पन्न रेडियो-एक्टिव अवशिष्ट। 5. कागज आदि की मिलों से प्राप्त अपशिष्टों का जलावतरण। 6. वाहित मल एवं कूड़ा-करकट के सड़ने से उत्पन्न अपशिष्टों का जल
विसरण एवं निस्तारण ।
ऐसा माना जाने लगा है कि यदि ये अवशिष्ट पूर्णतः या अंशतः भी उपचारित नहीं किये गये, तो मानव समाज का अस्तित्व आज नहीं, तो कल अवश्य ही खतरे में पड़ने वाला है। अगर उद्योगों से1. जल प्रदूषित हो रहा है। 2. वायु विषाक्त हो रही है 3. मिट्टी अनुर्वर और विषैली होती जा रही है 4. प्रकृति के पुनश्चक्रण-चक्र अप्रभावी सिद्ध होने लगे हैं 5. हमारा संरक्षक ओजोन प्रस्तर दुर्बल होता जा रहा है 6. वन वृक्ष एवं समुद्री व जलीय जीवों की अनेक प्रजातियां नष्ट हो रही हैं 7. प्रकृति की भौतिकी एवं रसायन परिवर्तित हो रहे हैं
तो ऐसा लगता है जैसे प्राकृतिक पर्यावरण ही नष्ट हुआ जा रहा है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि कुछ समय बाद प्राकृतिक पर्यावरण का विनाश और मानव के अस्तित्व की सम्भावना समानुपाती हो जायेंगे यदि हम पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित नहीं कर सके। इस प्रदूषण से अनेक प्रकार के रोगों का बहुमात्रा में उद्भव हो रहा है और अनेक उपयोगी अपघटक जीवाणु संहारित हो रहे हैं। मिट्टी में पैदा होने वाले खाद्य पदार्थ भी विषतत्त्वी हो रहे हैं। विषैली भारी धातुयें वातावरण में आ रही हैं। फिर भी, यह ध्यान में रखना चाहिये कि यह विषाक्तता नगरीय और औद्योगिक क्षेत्रों में अधिक है, ग्रामीण क्षेत्रों में कम है। घनी आबादी ही इसका केन्द्र है।
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