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हरिवंशपुराण में विद्याओं के विविध रूप (531)
साधित विद्यायें
जब साधु-चर्या से भ्रष्ट नमि और विनमि भगवान् ऋषभदेव से राज्य याचना के लिये बैठ गये, तब उनका सेवक धरणेन्द्र अपनी दिति और अदिति देवियों के साथ आया। इन देवियों ने दोनों राजाओं को विद्या-कोश ( अनेक सिद्ध विद्यायें ) दिया और धरणेन्द्र ने उन्हें विजयार्ध के दक्षिण और उत्तर श्रेणी के 110 नगरों वाले राज्य दिये। इन विद्याओं के धारक आठ-आठ वर्गों वाले दो निकाय हैं । इनके नाम इन्हीं विद्याओं के आधार पर रखे गये। इनके अपने विशेष रूप और वेश भी होते हैं। इनमें निम्न कोटि की 49 विद्यायें पाई जाती हैं ।
1.
सामान्य राज-विद्यायें
2. शक्ति और औषध विद्यायें
3. मन्त्र परिष्कृत विद्यायें
25
13
11
अ. सामान्य राजविद्यायें : 25 : इनमें प्रज्ञप्ति (गुप्त बात जानना, कहना), रोहिणी, अंगारिणी, महागौरी, गौरी, सर्वविद्या- प्रकर्षिणी, महाश्वेता, मयूरी, हारी, निर्वज्ञ-शाद्वला, तिरस्कारिणी, छाया संक्रमिणी, कूष्मांड - गुणमाता, सर्वविद्या- विराजिता, आर्या कुष्मांडदेवी, अच्युता, आर्यवती, गान्धारी, निर्वृति, दंडाध्यक्षगण, दंडभूतसहस्रक, भद्रकाली, महाकाली, काली एवं कालमुखी समाहित हैं ।
ब. शक्ति और औषध विद्यायें : 13 : इनमें एकपर्वा, द्विपर्वा, त्रिपर्वा, दशपर्वा, शतपर्वा, सहस्रपर्वा, लक्षपर्वा, उत्पातिनी, त्रिपातिनी, धारिणी, अन्त- विचारणी, जलगति एवं अग्निगति समाहित हैं । ये औषध विद्यायें हैं ।
स. मन्त्र-परिष्कृत विद्यायें : 11 : इनमें सर्वार्थसिद्धा, सिद्धार्था, जयन्ती, मंगला, जया, प्रहार - संक्रमिणी, अशय्याराधिनी, विशल्यकारिणी, व्रणसंरोहणी, सवर्ण - कारिणी और मृत संजीवनी विद्यायें समाहित हैं। इन विद्याओं के विषय में यह अवश्य बताया गया है कि प्रज्ञप्ति, रोहिणी एवं गौरी विद्यायें स्त्रियों को ही सिद्ध होती हैं। हां, वे किसी को इनका दान कर सकती हैं।
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इन विद्याओं के अतिरिक्त अनेक दिव्य औषध विद्यायें और औषधियां भी हरिवंशपुराण में विविध विद्याओं के रूप में विशेषतः उल्लिखित हैं। उदाहरणार्थ, औषध विद्याओं में तीन दिव्य औषधियों-चालन, उत्कीलन एवं उन्मूल- व्रणरोह का उपयोग वृक्ष पर टंगे विद्याधर के लिये किया गया है (पेज 305 ) । मन्त्र - 1 - विद्या जीवनदान देती है। इसके साथ ही मातंग विद्या, गरुड़ विद्या, सिंह विद्या, बोतल विद्या और शाबरी विद्या आदि का अनेक स्थानों पर उल्लेख है । प्रद्युम्न ने नागगुहा में प्रवेश कर अधिष्ठाता देव से नागशय्या, आसन, वीणा, भवन-निर्माण और ऐसी ही अनेक विद्याओं का खजाना प्राप्त किया (पेज 559 ) । उसने विद्यामय हाथी भी प्राप्त किया। इसी
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