Book Title: Nandanvana
Author(s): N L Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

Previous | Next

Page 556
________________ (536) : नंदनवन बताने पर हमें धन्यवाद अवश्य मिल जायेगा। नाममात्र के श्रवण की परम्परा ग्राम संस्कृति प्रधान भारत के लिये तो अटपटी ही है। यहां परिचय नाम के अतिरिक्त धाम, व्यवसाय, परिवार आदि की जानकारी भी सम्मिलित मानी जाती है। पर ये बातें यहां विभिन्न प्रश्नों के उत्तर में मिलती हैं। साधारणतः इस तरह के प्रश्न भी बड़े साहसिकता के साथ किये जाते हैं, उनके उत्तर न मिलने का खतरा भी निहित रहता है। हां, बम्बई जैसे शहर लन्दन से एक बात में अवश्य होड़ लेते दिख रहे हैंवह है चाय-पान। चाय-पान की विविधतायें निरन्तर बढती जा रही हैं और हिमशीतल चाय से लेकर अत्युष्ण चाय के, विभिन्न तरल पेयों का आनन्द ले सकते हैं। ब्रिटेन चाय प्रधान देश है। इस मामले वह काफीपायी अन्य योरोपीय देशों से भिन्न है। चाय यहां का राष्ट्रीय पेय है जैसे कोकाकोला अमेरिका में है। सामान्यतः सूर्योदय से पहले से लेकर शयन कक्ष में जाने तक कोई आठ-नौ बार तो चायपान परम्परागत बन ही गया है। इसके अतिरिक्त, संगीत समाज और समायोजनों के कारण यह संख्या अगणित रूप से बढ़ सकती है। भारत में भी चाय का यही रूप धीरे-धीरे पनपता जा रहा है। स्वागत और शिष्टाचार का तो यह अभिन्न अंग बन ही गया है। चाय पान उष्ण पेय के रूप में ही लिया जाता है। पर चाय के अतिरिक्त एक अन्य पेय भी लन्दन में इतना प्रचलित है, जिसके प्रचलन की बम्बई के लोग अभी कल्पना नही कर सकते। यह पेय है - शराब के विभिन्न रूप। आप ब्रिटेन में कहीं भी चले जाइये, लगभग एक चौराहे से दूसरे चौराहे के बीच कई 'इन' और 'बार मिलेंगे। इतने आपको किसी अन्य देश में शायद ही मिलें और पीने वाले भी बड़े बहादुर होते हैं। घंटों वहां बैठते हैं और पेय व संगीत का आनन्द लेते हैं। शुक्र की शाम से लेकर शनि की रात तक सप्ताहान्त में बहुत जगह 'इन' और 'बार' खुले रहते हैं। इन स्थानों की रंगरेलियां देखते ही बनती हैं। इनका चरम रूप देखकर तब बहुत ही मनोरंजन होता है, जब बन्द करने के समय रात में पुलिस की सहायता लेनी पड़ती है। सच पूछिये तो, बम्बई के सामान्य भारतीयों का जीवन धार्मिक दृष्टि से युग-युगान्तरव्यापी जीवन है और उसके अनुरूप ही उसके क्रिया-कलाप होते हैं पर लन्दन में अधिकांश व्यक्तियों का जीवन साप्ताहिक ही होता है। पांच-साढ़े पांच दिन काम और डेढ़-दो दिन डटकर आराम। न वहां अगले सप्ताह की चिन्ता है और न ही पिछले का कोई भूत ही वहां चढ़ा रहता है। जीवन के इस दृष्टिकोण की विभिन्नता लन्दन और बम्बई को बिलकुल ही विरोधी दिशा में पड़ने वाले समुद्र के दो किनारों के समान बना देती है। लन्दन और बम्बई की ये भेदक रेखायें तो हर व्यक्ति को कुछ ही समय में स्पष्ट हो जाती हैं और उसे उक्त डाक्टर सज्जन की भ्रान्त धारणा पर तरस आये बिना नहीं रहेगा। यदि हम थोड़ी सी भीतरी झलक लेने का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592