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युद्ध विद्यायें
इस पुराण में सर्वाधिक विवरण युद्ध से सम्बन्धित विद्याओं का पाया जाता है। सामान्य युद्धों में दृष्टि-युद्ध, मल्ल - युद्ध एवं जल-युद्ध (भरत - बाहुबलि ) का वर्णन है। इसके अतिरिक्त, गदा युद्ध, धनुर्विद्या ( विविध प्रकार के बाण), सैन्य व्यूह के अन्तर्गत चक्र और गरुड़ व्यूह की रचना तथा विभिन्न परालौकिक विद्या से प्राप्त अस्त्रों का विवरण भी है जो एक-दूसरे के काट करते हैं। इनमें निम्न प्रमुख हैं :
मारक अस्त्र
आग्नेय अस्त्र
मोहन (मूर्च्छा) अस्त्र
हरिवंशपुराण में विद्याओं के विविध रूप : (529)
वायव्यास्त्र
वैरोचन अस्त्र
रौद्रास्त्र / अश्वजीव अस्त्र
राक्षस अस्त्र
वारक अस्त्र
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वरुणास्त्र
चित्त- प्रसादन अस्त्र अंतरिक्ष अस्त्र
माहेन्द्र अस्त्र ब्रह्मशिर अस्त्र
नारायण अस्त्र
तामसास्त्र
भास्कर अस्त्र
नागास्त्र
गरुड़ अस्त्र
संवर्तक अस्त्र
महाश्वसन अस्त्र
चक्र रत्न
महा अस्त्र
ये विवरण वसुदेव- जरासंध तथा जरासंध - कृष्ण युद्ध के अन्तर्गत आये हैं । चमत्कारी या सिद्ध विद्यायें
प्राचीन जैन शास्त्रों में, इस कोटि की 16 विद्याओं के नाम आते हैं। इसके विपर्यास में, इस पुराण में इन विद्याओं के विषय में अगणित संख्या में उल्लेख आये हैं। यह बताया जा चुका है कि विद्यानुवाद में 700 लघु और 500 महाविद्याओं के साथ 8 महानिमित्त विद्याओं का भी उल्लेख है । ये सभी विद्यायें विभिन्न प्रकार की साधनाओं में सिद्ध की जाती हैं और इनकी अधिष्ठात्री देवियां आवश्यकतानुसार इनको प्रकट करती हैं। यद्यपि इन विद्याओं का पूर्ण विवरण उपलब्ध नहीं होता, पर इनमें अनेक प्रमुख विद्याओं के सदुपयोग-दुरुपयोग हरिवंशपुराण में पाये जाते हैं।
इन विद्याओं को धारण करने वाले मनुष्य सामान्यतः विद्याधर कहे जाते हैं। ये विजयार्ध एवं वैताढ्य पर्वत पर निवास करते हैं, संयमी होते हैं और विद्यानुवाद के अध्येता होते हैं। वे विद्या विज्ञान में पारंगत होते हैं। ये कुल, जाति तथा तप-विद्याधारी होते हैं और त्रिलोकसार 709 के अनुसार इज्या, वार्ता, दत्ति, स्वाध्याय, संयम एवं तप नामक षट् कर्मों में सदैव प्रवृत्त रहते
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