Book Title: Nandanvana
Author(s): N L Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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(528) : नंदनवन
विराधना होती है। इसका सोदाहरण विवरण भी दिया गया है। तथापि, अन्य ग्रन्थों में यह बताया गया है कि सावध कर्म धर्मरुचि, लोभ-त्याग एवं भक्ति के माध्यम हैं, इसीलिये इनमें पुण्यभाव भी पर्याप्त है। सावधता की अधिकता के कारण ही श्रावकों के लिये पुराने समय में प्रचलित 15 व्यवसाय (खर कम) अकरणीय बताये गये हैं। सामान्य श्रावकों को ये विद्यायें सीखनी पडती हैं, पर चक्रवर्तियों को ये महाकाल आदि नवविधियों से प्राप्त होती हैं। राजवंशीय विद्यायें ___हरिवंश पुराण राजवंशों से सम्बन्धित महापुरुषों का चरित प्रस्तुत करता है। इन्हें जीविका-सम्बन्धी मसि, शिल्प या वाणिज्य कर्म की कोई आवश्यकता ही नहीं होती। फलतः इसमें इन विद्याओं का वर्णन नाममात्रेण ही है, लेकिन राज-वंशोचित लगभग सोलह विद्या-कर्मों का संक्षिप्त विवरण है। उदाहरणार्थ, इनमें युद्ध विद्या से सम्बन्धित सात (धनुर्विद्या, शस्त्रविद्या, अस्त्रविद्या, युद्धविद्या, सैन्यव्यूह-विद्या, रणविद्या, गदाविद्या), स्वप्न शास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र तथा मनोविनोद के लिये गंधर्व विद्या (संगीत, वाद्य एवं नाट्य) से सम्बन्धित तीन तथा यज्ञ, वेद, नीति तथा माला-गुंथन आदि विद्याओं का अनेक प्रकरणों में विवरण है। यद्यपि तीर्थंकरों के चरित्र-वर्णन में इनका उल्लेख नहीं है, पर नेमिनाथ के युद्ध-कौशल की चर्चा है। इन विद्याओं का वर्णन वसुदेव, प्रद्युम्न, कृष्ण तथा अन्य चरित्रों के अन्तर्गत दिया गया है।
स्वप्न शास्त्र एवं सामुद्रिक शास्त्र के विषय में रोहिणी, देवकी एवं तीर्थकर माता के स्वप्नफल बताये गये हैं। अनेक महापुरुषों के शरीरगत लक्षणों एवं व्यंजनों के आधार पर उनका भविष्य बताया गया है।
यज्ञ विद्या, वेद विद्या का अभ्यास पुरुष और महिलायें (सोमश्री, सुलसा नन्दा) - दोनों करते थे। सुभौम एवं हिरण्य को शास्त्र-शस्त्र विद्या का सागर ही बताया गया है (25वां सर्ग)। वसुदेव, गंधर्वसेना, विजयसेना व बसन्तसेना के प्रकरण में गधर्व विद्या या संगीत विद्या की लोकप्रियता बताई गई है। संगीत विद्या के अत्वार्य को गंधर्वाचार्य कहते थे। वसुदेव को इस विद्या का पण्डित बताया गया है। इस विद्या के अन्तर्गत गेय एवं वाद्य-दोनों रूप आते हैं। गेय के अन्तर्गत मालाकार, नापित, गोपाल रागों का उल्लेख है जबकि वाद्य के अन्तर्गत तत् कोटि में सत्रह तारों वाली वीणा, घोषा, सुघोषा और महाघोषा कोटि की वीणाओं (पे. 302) तथा प्रणव वाद्य का उल्लेख है। नृत्य विद्या भी एक लोकप्रिय कला है। इसके अन्तर्गत सूची नृत्य एवं अंगुष्ठ नृत्य का वर्णन है। स्त्रियों के लिये माला-गुन्थन-विद्या का भी उल्लेख है जिसमें वसुदेव ने भी महारथ प्राप्त कर सुन्दरी राजकन्या को । पराजित किया है।
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