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हरिवंशपुराण में विद्याओं के विविध रूप : (527)
1. असि कर्म : अस्त्र, शस्त्र, धनुष आदि विद्या और इसका उपयोग 2. मसि कर्म : आय-व्यय-विवरण। लेखा-विद्या, 3. कृषि कर्म : कृषि उपकरणों का निर्माण एवं कृषि कर्म 4. विद्या कर्म : 72 पुरुष-कलाओं एवं 64 स्त्री-कलाओं का परिज्ञान,
उपयोग (इनमें अध्ययन-अध्यापन, यजन-पूजन
आदि भी समाहित हैं) 5. शिल्प कर्म : इंजीनियरी, हस्तशिल्प, क्षौरकर्म, वस्त्रकर्म, धातुकर्म,
कुंभकर्म, प्रक्षालन, कर्म, नगर-निर्माण आदि का ज्ञान
और प्रयोग (इसमें 15 खर कर्म सम्मिलित नहीं हैं) 6.वाणिज्य कर्म : घृत, रस, धान्य, वस्त्र, मोती आदि का व्यापार
इसके साथ ही, भगवान ने अपनी पुत्रियों को अंकलिपि, अक्षरलिपि तथा संगीत आदि भी सिखायी थी। यद्यपि शास्त्रों में इन्हें कर्म कहा जाता है, पर वस्तुतः ये विद्यायें ही हैं जिनके ज्ञान और प्रयोग से व्यक्ति अपना जीवन निर्वाह करते हैं।
इस पुराण में इन विद्याओं और कलाओं का विवरण तो नहीं है, पर अन्य शास्त्रों में इनका विवरण है। समवाओ ग्रन्थ के टिप्पण में जम्बूदीपप्रज्ञप्ति सहित पांच ग्रथों में वर्णित पुरुषों की 72 कलाओं की तुलनात्मक सारणी दी गई है जिसमें उपरोक्त सभी षट्कर्म सूक्ष्म या स्थूल रूप में समाहित हो जाते हैं। यही नहीं, इनमें निमित्त शास्त्र, निर्जीव सजीवन तथा अनेक सिद्ध-विधायें भी समाहित होती हैं। 'साइंटिफिक कंटेंट्स इन प्राकृत केनन्स' (पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी 1996, पृ. 75 -120) नामक एक सद्यः प्रकाशित पुस्तक में दस ग्रथों के आधार पर कलाओं की तुलनात्मक सूची दी गई है। इससे यह पता चलता है कि समय-समय पर अनेक कलायें लुप्त हुई हैं और नयी कलायें संयोजित हुई हैं। इससे कलाओं की संख्या लगभग दुगुनी हो गई है। अनेक उत्तरवर्ती ग्रंथों में स्त्रियों की 64 कलाओं की सारणी भी दी गई है। इनमें स्त्रियोचित गुणों का विशेष महत्त्व है। ये भी समय-समय पर लुप्त और संयोजित होती रही हैं और इसकी संख्या भी लगभग दुगुनी हो गई है।
राजवार्तिक 3.36 में यह भी बताया गया है कि सभी षट्कर्म अविरति, विरति और संयम की दृष्टि से सावद्य (हिंसामय), अल्पसावद्य (अल्प हिंसामय) और असावद्य (अहिंसामय) होते हैं। तत्त्वार्थभाष्य 3.17 में यह भी कहा गया है कि शिल्प-कर्म तुलनात्मकतः अल्पसावध होते हैं और इन्हें गर्हित नहीं मानना चाहिये। इसके साथ ही, कषायपाहुड़ में तो यह भी बताया गया है कि दान, पूजा, शील, उपवास आदि का श्रावकधर्म भी सावध (हिंसामय) होता है क्योंकि इसके सभी रूपों में षट्काय के जीवों की
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