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(518) : नंदनवन
बीसवीं सदी के पूर्वार्ध तक नगण्य संख्या ही रही है। इनमें बाल्टीमोर के मारिस ब्लूमफील्ड ने 'पार्श्वनाथ चरित' तथा 'शालिभद्र चरित' को अंग्रेजी में 1919-23 के बीच प्रस्तुत किया और वाशिगंटन के प्रो. ब्राउन ने 1933-41 में कालकाचार्य कथा, 'कल्पसूत्र' की लघु चित्रकला का संग्रह एवं उत्तराध्ययन की पांडुलिपियों पर अध्ययन किया। पर अब स्थिति बदल गई है। जैन इंटरनेशनल की 2001 की सूची में अमरीका के विभिन्न विश्वविद्यालयों में कार्यरत 30 जैनविद्या मनीषियों के नाम हैं जबकि डेनीसन के डा. कोर्ट ने 1944-2001 के बीच इस क्षेत्र में दो दर्जन पी. एच डी. अर्जकों के नाम दिये हैं। इससे पता चलता है कि अमरीका में जैनविद्या उन्नायकों में पैन्सिलवानियां, हार्वर्ड, वर्कली, शिकागो एवं हवाई विश्वविद्यालय के शोधक प्रमुख रहे हैं। चूंकि यहां यह शोध काफी देर से प्रारम्भ हुआ, अतः यहां आगमेतर विषयों पर अधिक काम हुआ। उदाहरणार्थ- इनमें जैनों के अनुसार, द्रौपदी का विवाह, लिंग और साधुता, जैन महासतियां, महिलायें और साधु, अघातिया कर्म, कर्म और नियमन, जैन श्राविकायें, दान कर्म का विकास, आगमों की मिथकता या पुराणकथायें, जैन संगीत, जैन पुरातत्त्व, त्याग और श्रमणवृत्ति समवसरण, जैनों की जैनेतरों के प्रति धारणा, अमरीका के प्रवासी जैन, जैन विश्वविद्या तथा अनेक भौगोलिक एवं ऐतिहासिक विवरणों का समीक्षण समाहित है। इन उन्नायक मनीषियों में अर्नेस्ट वेंडर, प्रो. पी. एस. जैनी, क्रिस्टी वाइली, डॉ. जॉन कोर्ट, डा. क्रिस्टोफर चैपल, क्रामवैल क्रोफार्ड, माइकल मीस्टर आदि प्रमुख हैं। ये सभी लोग अनेक बार भारत आये हैं और अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में जैन विषयों पर शोधपत्र पढ़ते रहे हैं। इनके अधिकाश शोध श्वेताम्बर परम्परा पर हैं। इनमें वर्तमान में डा. कोर्ट सर्वाधिक सक्रिय हैं। इन्होंने 'मोक्ष' पर शोध किया था । इन्होंने जयपुर में द्यानतराय की पूजा का अंग्रेजी अनुवाद किया है और तारणस्वामी पर भी शोध की है।
विदेशों में जैनधर्म व विद्या के प्रसारकों में उन प्रवासी भारतीयों का योगदान भी उल्लेखनीय है जिन्होंने जैन केन्द्रों, साहित्य तथा पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन, अन्तर्विश्वासीय संगठनों के सदस्य बनकर इसे जैन एवं जैनेतरों में संप्रसारित करते हैं और जिनकी एकाधिक पीढ़ी विदेशों में ही रह रही है। ऐसे व्यक्तियों में डा. खिंदूका, डा. पी. एस. जैनी, डा. दीपक जैन, डा. प्रगति जैन, डा. सुलेख जैन, डा. पी. वी. गाडा तथा श्री योगेन्द्र जैन आदि के नाम लिये जा सकते हैं। आजकल प्रेक्षाध्यान केंद्र, मंदिर निर्माण एवं मूर्ति प्रतिष्ठायें आदि भी इस संवर्धन के माध्यम बने हैं । इन्होंने 'जैना लाइब्रेरी भी स्थापित की है। यहां का 'सिद्धाचलं' का मंदिर दर्शनीय एवं पर्यटक स्थल बन गया है।
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