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जैनविद्या संवर्धन में विदेशी विद्वानों का योगदान : (517) 'पउमचरिय' का आलोचनात्मक अध्ययन किया है। यूट्रेक्ट विश्व विद्यालय से विलहेल्म बोले ने 'सूत्रकृतांग' पर शोध की है। इसके अतिरिक्त एन्टवर्प एवं ब्रसेल्स में जैनविद्या पर काफी काम हो रहा है। यहां लंदन के डाक्टर शाह वर्ष में कुछ दिनों के लिये जैनधर्म का अध्यापन करने जाते हैं। ___ स्विटजरलैंड के दो विद्वान बहुश्रुत हैं। ई. फिशर ने जैन प्रतिमा विज्ञान पर काम किया है और वर्तमान में डा. ब्रोंकहर्ट जैन और बौद्धधर्म के तुलनात्मक अध्ययन (ध्यान, आजीवक, अनेकान्तवाद आदि) में लगे हैं। इनकी कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हैं। ये लुसान विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं।
आजकल स्वीडन एवं फिनलैंड भी जैनविद्या शोधकों के केन्द्र बन रहे हैं। स्वीडन के स्टॉकहोम, उपसला एवं लुंड विश्वविद्यालयों में भी जैन धर्म पर शोध हो रहे हैं, वहां के विद्वानों ने 'सिहलावदान' तथा 'लवकुशोपाख्यान के जैन रूपों पर शोध किया है। प्रो. ओले क्वाभर्सस्ट्राम ने तो अभी योगशास्त्र का अंग्रेजी अनुवाद किया है और वे 'सर्वज्ञता का तुलनात्मक अध्ययन कर रहे हैं। ये सिद्धसेन दिवाकर के न्याय की पुस्तको के अंग्रेजी अनुवाद में भी रुचि रखते हैं। इन्होंने डा. पी. एस. जैनी के सम्मान में आयोजित संगोष्ठी का अपने लुंड विश्वविद्यालय में संयोजन किया था जिसमें 12 देशों के पांच दर्जन से अधिक विद्वान सम्मिलित हुए थे। इनमें भारत से कोई न था। इन्होंने अपने यहां 'जैन अध्ययन' का एक पाठ्यक्रम चलाया है जिसमें वर्तमान में 40 विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं। फिनलैंड के हेल्सिंकी विश्वविद्यालय में भी अभी प्रो. कोस्कीकल्लियो के निर्देशन में जैन पाठ्यक्रम चालू हुआ है। इन दोनों ही स्थानों को दि. जैन विद्वत परिषद तथा जैन केन्द्र, रीवा ने लगभग पंद्रह हजार का साहित्य भेजा है। यहां डा. परपोला भी जैन अध्ययनों को प्रोत्साहित करते हैं। इन्हीं के मार्गदर्शन में 2003 में बारहवां विश्व संस्कृत सम्मेलन हुआ था जिसमें 'जैन अध्ययन' का भी एक अनुखंड था। फिनलैंड के ही एक विद्वान् डा. अन्ट टाहिटनेन ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 'भारतीय परम्परा में अहिसा' पर शोध करते हुए जैनों की अहिंसा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया था। इसी प्रकार नार्वे में भी प्रो. ब्रेके जैन और बुद्ध धर्म के तुलनात्मक पक्ष का अध्ययन ऑक्सफोर्ड में रहकर कर रहे हैं। हालैंड के यूट्रेक्ट के समान कुछ विश्वविद्यालयों में
जैनविद्याओं के प्रतिरुचि बढ़ रही है। पोलैंड के डा. वल्सेरोवित्स ने 'सिद्धसेन' पर काम किया है और पश्चिम में जैन-अध्ययनों से सम्बन्धित एक पुस्तक का सम्पादन भी किया है। 2. उत्तरी अमेरिका और कनाडा : (अ) अमरीका . अमेरिका और कनाडा-दोनों ही बड़े देश हैं और यहां उच्च शिक्षा के अनन्त नहीं, तो संख्यात अवसर हैं। फिर भी, यहां जैनविद्या के उन्नायकों की
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