Book Title: Nandanvana
Author(s): N L Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 535
________________ जैनविद्या संवर्धन में विदेशी विद्वानों का योगदान : (515) हैं। अब इन्हें 'जैन नेताओं तथा 'जैन कानून' पर अन्वेषण करने की बात ध्यान में आई है। जैन केन्द्र, रीवा की ओर से इन्हें पर्याप्त जैन साहित्य भेजा गया है। इसी केन्द्र में फ्रांस के विद्वान एल. रेनो ने 1951 में जैन धर्म पर भाषण दिया था जो प्रकाशित हो चुका है। 'कोल्हापुर के दिगम्बर जैनों' पर डा. कैरिथर्स ने डरहम विश्वविद्यालय से अच्छा शोध-प्रबन्ध प्रस्तुत किया है। इनके संयोजकत्व में जैन समाज-विद्या की एक गोष्ठी हुई थी जो 'असेम्बली आफ लिसनर्स' के नाम से प्रकाशित हुई है। मैडम जूलिया हैजेवाल्ड ने ऑक्सफोर्ड में 'खजुराहो की जैन स्थापत्यकला पर शोधकार्य किया है। ___भारतीय मूल के ब्रिटेनवासी डा. नटूभाई शाह और श्री विनोद कपासे ने तो इंटरकल्चरल विश्वविद्यालय, ओपियंडे (हालैड) से जैन विषयों पर पी. एच-डी. की है। ये दोनों ही व्यक्ति विदेशों में जैनधर्म संवर्धन का अच्छा काम कर रहे हैं। लेस्टर के जैन मन्दिर की प्रतिष्ठा डा. शाह ने ही कराई थी और वे अनेक विश्वविद्यालयों में जैनधर्म पर व्याख्यान करने भी जाते हैं। श्री कपासे लंदन में विशाल जैन मन्दिर निर्माण समिति के संयोजक हैं। लीड्स में सांख्यिकी के प्रोफेसर के. वी. मरडिया भी 'जैनधर्म की वैज्ञानिक आधारशिला' (अंग्रेजी) के माध्यम से पश्चिम में जैनधर्म संवर्धन में योगदान दे रहे हैं। इसके कारण पश्चिम में जैनधर्म के विषय में जैन युवा पीढी तथा जैनेतरों में जैनधर्म के विषय में अच्छी जानकारी हुई है। इनकी पुस्तक का हिन्दी अनुवाद भी पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी से अब हिन्दी में भी प्रकाशित हो चुका है। यह हिन्दी अनुवाद लेखक ने किया है। स) यूरोप के अन्य देश जर्मनी एवं ब्रिटेन के अतिरिक्त फ्रांस, स्विटरजरलैंड, स्वीडन और फिनलैंड आदि देशों में भी अनेक जैनविद्या के उन्नायक हुए हैं। बीसवीं सदी के प्रारम्भ में पेरिस के ग्वेरिनो ने “एसे डी बिब्लियोग्राफी जैनाज' के सन्दर्भ-ग्रंथ के माध्यम से वहां के विद्वानों का ध्यान जैनधर्म की ओर आकृष्ट किया। उन्होंने लियॉन एवं पेरिस के संग्रहालयों के जैन-संग्रह की सूची भी तैयार की थी। इन्होंने शान्तिसूरि के 'जीवविचार' तथा उत्तराध्ययन के 36वें अध्याय का फ्रेंच भाषा में अनुवाद एवं सम्पादन किया। उनकी अंतिम पुस्तक जैनधर्म के सिद्धान्त, सम्प्रदाय, विधि-विधान एवं संस्थाओं पर 1926 में फ्रेंच भाषा में प्रकाशित हुई है। उनका सन्दर्भ-ग्रंथ विन्टरनित्स के प्रमुख ग्रंथ 'हिस्ट्री आव इंडियन लिटरेचर' का आधार बना। जीन फिलेजा ने ब्रिटिश और जर्मन ग्रंथों तथा सिलवन लेबी की सूची के आधार पर पांडुलिपियों की संग्रह-सूची प्रकाशित की। उन्होंने वलभी राजाओं तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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