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विदेशों में जैन धर्म का संप्रसारण : (503)
जैन र्भ संप्रसारण के उपाय और क्षेत्र
जैनों के प्राचीन इतिहास से स्पष्ट है कि उनके व्यक्तिवादी विकास के उद्देश्य के बावजूद भी, उसके आचार्यों ने व्यक्तिगत, सामाजिक प्रगति तथा अज्ञान को दूर करने हेतु,समग्र विकास के लिये धर्म के लोक प्रचार एवं प्रसार को, अनुभव के आधार पर महत्त्व दिया है। यह सही है कि इन प्रक्रियाओं के माध्यम समय के साथ परिवर्तित हुये हैं। पूर्वकाल में, यायावर सन्त एवं व्यापारी धर्म-प्रसारक रहे हैं जो विश्व के विभिन्न भागों में जैनों के सांस्कृतिक दूत रहे हैं। डॉ. कामता प्रसाद जैन, डॉ. शेखर जैन, सतीश कुमार जैन और डॉ. जी. पी. जैन ने अपने लेखों और पुस्तकों में बताया है कि जैनों के सांस्कृतिक एवं पुरातात्त्विक अवशेष एशिया, अरब, चीन, यूनान, रूस एवं अन्य देशों में पाये जाते हैं। इससे स्पष्ट है कि यायावर सन्त और व्यापारी अपने आचार-विचारों के माध्यम से अपनी संस्कृति का परिरक्षण एवं प्रसार करते थे। तथापि, यह भी सही है कि उनके संप्रसारण की गति बौद्धों के समान नहीं थी जिन्हें राज्याश्रय भी प्राप्त था। अनेक जैन साधुओं ने दक्षिण और पश्चिम में राज्य स्थापना एवं स्थायित्व में मार्गदर्शन देकर जैन धर्म-ध्वजा फहराया। इस दिशा में कुछ गति तब आई जब साधु छठी-सातवीं सदी में वनों को छोड़ मंदिरों, चैत्यालयों एवं उपाश्रयों में रहने लगे। दक्षिण के राजा महेन्द्र वर्मा के समय में यह एक ज्वलन्त प्रश्न था कि क्या धर्म को राज्याश्रय मिलना चाहिये या राजा को धार्मिक होना चाहिए। जैनों ने अनुभव किया कि उपसर्गों और कठिनाइयों के संक्रमण काल में धर्म को राज्याश्रय मिलने पर ही सुरक्षित रखा जा सकता है। यह राज्याश्रय अनेक उपायों से प्राप्त हो सकता है :
01. सामाजिक एवं धार्मिक आयोजनों का सार्वजनिक रूप में सम्पादन 02. साधु-सन्तों द्वारा चमत्कारिक घटनायें 03. शास्त्रीय वाद-विवाद 04. धर्मान्तरण क्षमता। 05. विविधायुक्त साहित्य
जैन इतिहास में राजकुमार आर्द्रक, कालकाचार्य, बज्रस्वामी, समन्तभद्र, मानतुंग, अकलंक, शीलगुणसूरि, सिंहचंद्रमुनि, आचार्य हेमचन्द्र एवं अन्य कीर्तिमान आचार्यों के नाम सुज्ञात हैं जिन्होंने इन उपायों का उपयोग कर राज्याश्रय पाया और जैन धर्म के विस्तार में, विभिन्न युगों में महनीय योगदान दिया। इससे जैन धर्म अनेक सदियों तक अनेक क्षेत्रों में प्रसारित होता रहा। जैनों के समृद्ध साहित्य ने भी इस संस्कृति के संवर्धन एवं लोकप्रिय बनाने में योगदान किया।
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