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पर्यावरण और आहार संयम : (483)
आन्तरिक पर्यावरण ___ हमारा शरीर तन्त्र एक जटिल एवं स्वचालित मशीन है। इसके बाहरी पर्यावरण के सन्तुलन के विषय में जो दृश्य प्रक्रिया ऊपर बताई गई है, उससे हम शरीर तन्त्र के आन्तरिक पर्यावरण के सम्बन्ध में अनुमान लगा सकते हैं। तथापि यह ध्यान में रखना चाहिए कि हमारे शरीर तन्त्र के अन्दर भी दो प्रकार के पर्यावरण होते हैं : (1) भौतिक और रासायनिक (आहार ग्रहण, चयापचय आदि) और (2) मनोभावात्मक
ये दोनों भी अन्योन्य-सम्बद्ध, अन्योन्य-निर्भर एवं अन्योन्य-प्रभावी होते हैं। हमारी अस्मिता, महत्त्वाकांक्षा, आक्रामकता, क्रोध-मान आदि की सहज एवं मूल प्रवृत्तियां अनेक आपत्तियों की जननी हैं। इन मनोभावात्मक वृत्तियों में सुधार एवं शुभकरता के उपदेश सदियों से उपदेशित हैं, पर इनके अल्पीकरण के मूल कारण अब भी अज्ञात बने हुए हैं।
हमारे आहार और उसके पाचन की एन्जाइमी बेक्टीरियाई तथा अम्ल-क्षारी चयापचयी क्रिया में उत्पन्न जीवन के अनेक घटक मुख्यतः रासायनिक पदार्थ ही हैं। यह किया समग्रतः उष्माक्षेपी होती है जिसमें हमें जीवन के विविध कार्यों के लिये समुचित ऊर्जा मिलती है। इस क्रिया में उपयोगी पदार्थों के अतिरिक्त अनेक प्रकार के ठोस एवं तरल अवशिष्ट भी बनते हैं जिन्हें हमारा शरीर मल-मूत्र एवं स्वेद आदि के रूप में उत्सर्जित करता रहता है। आहार, के अंतर्ग्रहण के बाद से शरीर तंत्र की सभी अन्तरिक भौतिक क्रियायें स्वचालित एवं सन्तुलित रूप में होती रहती हैं। आहार की अप्राकृतिकता, अधिकता, कुपोषण अथवा अन्य बाह्य कारक इस प्रकिया में बाधा या असन्तुलन उत्पन्न करते हैं। इससे हम बीमार पड़ जाते हैं, हमारा व्यवहार परिवर्तित हो जाता है। औषध, व्यायाम, योगासन, प्राणायाम, उपवास, सत्संग एवं ध्यान आदि से इन क्रियाओं में पुनः सन्तुलन स्थापित करने का प्रयास किया जाता है। यदि आहार के घटक समुचित मात्रा में हों और चयापचयी क्रिया भी समुचित हो, तो इन क्रियाओं में ऐसे घटक निर्मित होते हैं जिनसे हमारा भावात्मक निर्माण होता है। एड्रेनलीन, डोपामीन, सेरोटोनिन आदि के समुचित ग्रंथि-स्राव हमें सामान्य एवं सक्रिय बनाये रखते हैं और इनका असन्तुलित अथवा अधिक स्राव हमारी मानसिक अवस्था को विकृत कर देता है। वस्तुतः यदि हम पोषक तत्त्वों से युक्त सन्तुलित एवं संयमित आहार लें, तो वह हमारी भौतिक एवं आध्यात्मिक प्रगति के लिये हितकारी होता है। यह पाया गया है कि हमारे भौतिक मस्तिष्क में विभिन्न संवेदनों, आवेग, उद्वेगों तथा विश्वासों के ऊर्जावान केन्द्र हैं। इनका सन्तुलित उद्भाव एवं संचालन हमारे आहार की चयापचयी क्रिया
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