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पर्यावरण और आहार संयम : (481)
वर्तमान में पर्यावरणशास्त्री, विभिन्न सरकारें एवं अनेक विश्व संगठन पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को प्रभावहीन बनाने में प्रयासरत हैं। उन्होंने पर्यावरण संगठन और संस्थान बनाये हैं। इनके माध्यम से विषाक्त पर्यावरण के सन्तुलन के लिये अनेक उपाय सुझाये गये हैं।
इन सुझावों का मूल अधार यह है कि हमारे भूमंडल की सीमा बढ़ाई नही जा सकती और हमारा पृथ्वी ग्रह एक मानव केंद्रित आवृत यंत्र है। इसीलिए हमें प्रकृति पर विजय की अस्मिता के बदले प्रकृति से सहयोग की भावना को मूर्तरूप में अपनाना होगा। औद्योगिक एवं यातायात वाहनों आदि के प्रदूषण को कम करने के लिये अपशिष्टों के शोधन एवं पुनश्चक्रण की प्रक्रिया तेज करनी होगी जिसकी मानव ने औद्योगिक क्रांति के युग से ही उपेक्षा की है। साथ ही, जनसंख्या के स्थिरीकरण के उद्देश्य के अनुरूप उद्योगों के निरन्तर विस्तार के बदले उनका भी स्थिरीकरण करना होगा। इसी प्रकार, हमें प्रकृत्या अपघटित होने वाले प्लास्टिक और रबर आदि पदार्थ बनाने होंगे। भारत में डॉ. नंदा ने इस दिशा में काम किया है। साथ ही, हमें प्रकृति प्रदूषक अनपघटनीय पदार्थों का निर्माण कम करना होगा। उद्योगों से प्राप्त होने वाले गैसों व द्रवों को शोधित कर ही वायुमंडल में छोड़ने की प्रक्रिया अनिवार्य रूप से अपनानी होगी। इसके अतिरिक्त, आद्योगिक युग ने प्रकृति में एकरूपता के अभिवर्धित करने की प्रवृत्ति उदित की है। उसे परिविर्धित कर उसकी विविध सूक्ष्मता की प्रतिष्ठा करनी होगी। प्राकृतिक विविधरूपता, प्रतिरोध क्षमता एवं पर्यावरण-सन्तुलन-सक्रियता की प्रतीक सिद्ध हुई है।
पश्चिम के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में काफी काम किया है। भारत भी, अब उनका शनैःशनैः अनुकरण कर रहा है। उदाहरणार्थ, अपशिष्टों का पुनश्चक्रण अब एक सामान्य प्रक्रिया बन रही है। अब तो अपशिष्टों के सदुपयोग का युग ही आ रहा है। गैसीय एवं द्रव अपशिष्टों के निस्तारण के पूर्व उनके फिल्टरन एवं रासायनिक उपचार की प्रक्रिया अनिवार्य, बनाई जा रही है। वृक्षारोपण और वन्य प्राणी संरक्षण की मसाल भी जलने लगी है। पानी, बिजली एंव ईंधन के न्यूनतम उपयोग को टी.वी. तक पर प्रसारित कर प्रोत्साहित किया जा रहा है। कृषि जगत् में गोबर या प्राकृतिक खाद को वरीयता देने का अभियान चलाया जा रहा है। ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधनों (गोबर गैस, सौर ऊर्जा, वायु-ऊर्जा आदि) का विकास किया जा रहा है। इन विधियों से प्रदूषण पूर्णतः तो निरस्त नहीं होगा, पर उसमें पर्याप्त अंशों में कमी की जा सकेगी। इन सभी तथा अन्वेषण में चल रही अन्य विधियों से हम पर्यावरण को और अधिक असंयत बनाने के बदले संयमित बनाने की प्रक्रिया अपना रहे हैं। इस प्रकार जनसंख्या संयमन के समान औद्योगिक प्रदूषण का संयमन भी आज के युग की अनिवार्य आवश्यकता है।
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