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अललित जैन साहित्य का अनुवाद : कुछ समस्यायें : (493)
भारतीय वातावरण में इतनी द्रुतगति से कार्य करने की कल्पना भी कुछ दुरुह लगती है। फिर भी, ग्रन्थ के अनुवाद और प्रकाशन के समय में तीन वर्ष का समय पर्याप्त माना जाना चाहिये।
अभी अललित साहित्य के हिन्दी अनुवाद बहुत कम हुये हैं। अंग्रेजी अनुवाद तो और भी कम हुये हैं। अनुवाद की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिये उनमें टिप्पण होना एक स्वस्थ परम्परा है। यह ग्रन्थों में आधुनिकता लाने का प्रयत्न है। यह भावों की स्पष्टता के लिये भी अपेक्षित है। कुछ विद्वानों ने स्फुट न्याय, गणित तथा ज्योतिष ग्रन्थों के अनुवाद किये हैं, पर जिस मात्रा में मूल और पन्द्रहवीं सदी तक के उपरोक्त कोटि के ग्रन्थों के अनुवाद की आवश्यकता है, उस रूप में यह सब सागर में जल बिन्दु के समान हैं। इस विषय में अपार क्षेत्र पड़ा हुआ है। नई पीढ़ी को अपना यह उत्तरदायित्व निभाना चाहिये। सम्भवतः वह इस दिशा में प्रेरित हो सके यदि भारतीय विश्वविद्यालय, जापान आदि उन्नत देशों की तरह उत्तम सटिप्पण अनुवाद पर भी शोध-उपाधि प्रदान करने लगे।
अनुवाद और उसका प्रकाशन समयसाध्य, श्रमसाध्य एवं व्ययसाध्य कार्य है। यह गम्भीर अध्ययन भी चाहता है। आज समाज में अनेक शोधोन्मुख संस्थाएँ पल्लवित, पुष्पित और फलित हो रही हैं। मुझे विश्वास है कि ये जैन साहित्य के विविध अंगों के अनुवाद के माध्यम से पूर्व और पश्चिम के जिज्ञासु अध्येताओं और मनीषियों के लिये योजनाबद्ध रूप से उपलब्ध कराने में आनेवाली सभी बाधाओं को दूर करेंगी और जैन विद्या व सिद्धान्तों को विश्वीय परिप्रेक्ष्य में समुचित स्थान प्राप्त कराने में सहायक होंगी।
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