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(436) : नंदनवन त्याग किया जाता है। इसके विपर्यास में, भोगोपभोग परिमाणव्रत में भोजन-घटकों का परिमाण, कुछ का त्याग तथा त्याग-काल परिमाण भी समाहित होता है। सामान्यजन इन दोनों ही कोटियों में नहीं आते। अतः इनसे सम्बन्धित आहार नियम उन पर अनिवार्यतः लागू नहीं किये जा सकते। हां, यदि कोई इच्छुक है, तो वह इन नियमों के पालन का अभ्यास कर सकता है। इस सम्बन्ध में हम यहां कुछ शास्त्रों में विद्यमान विवरणों पर प्रकाश डालेंगे। इनके आधार पर शास्त्रीय विद्वज्जन इस चर्चा को निषेधात्मक रूप में प्रस्तुत करते हैं। हम निषेध से अर्थापतित विधि रूप में प्रस्तुत करेंगे। अ. भोगोपभोग परिमाणव्रत
भोगोपभोग परिमाणव्रत से सम्बन्धित रत्नकरंडश्रावकाचार के श्लोक 85 में अल्पफल बहुविघात के रूप में आर्द्र अदरक व मूली (कुछ फूल) के अनाहरण का संकेत है। यदि इन्हें कन्दमूल का प्रतिनिधि माना जाय, तो केवल आर्द्र या सचित्त साधारण वनस्पति का निषेध प्राप्त होता है, अचित्त या शस्त्रपरिणत अनन्तकाय का नहीं। वस्तुतः इस व्रत में संपूर्ण त्याग नहीं, अपितु एकाधिक वनस्पतियों के रूप में परिमित काल के लिये त्याग किया जाता है। यह तो सचित्त त्याग प्रतिमा है जहां सचित्तों के त्याग की पूर्णता होती है। कार्तिकेयानप्रेक्षा की गाथा 350 में तो केवल तांबल (पत्र-शाक का प्रतिनिधि) के परिमित त्याग की बात कही गई है। इसके विपर्यास में, गाथा 379 में भी सात के बदले पांच सचित्तों के खाने का निषेध है। गाथा 350 में 'आदि' शब्द भी नहीं है जिससे गाजर आदि कन्दमूलों का समावेश हो। (शायद ये उस युग में ज्ञात न हों ?) ये गाथायें स्थावर-हिंसा की अधिकता के किंचित् नियमन की प्रतीक हैं। इसके साथ ही, यह व्रत भी उच्चतर श्रेणी का है। कितने लोग इस श्रेणी में आते हैं ?
श्रावक के आठ मूलगुणों में भी कन्दमूल समाहित नहीं है। अहिंसा व्रत के अतिचारों और भावनाओं में भी इनका नाम नहीं है। हां, वहां आलोकितपान-भोजन अवश्य है जो सभी का कर्तव्य है।
सागारधर्मामृत (5.20) में भोगोपभोग परिमाणव्रत के अतिचारों में सचित्ताहार का नाम है, अचित्ताहार का नहीं। साथ ही, न सेवन करने योग्य पदार्थों में अनिष्ट और अनुपसेव्य की चर्चा है जो अभक्ष्यता की कोटियों के अपवाद मार्ग है। वहां कलींदा, सूरणकंद एवं द्रोणपुष्प के परिमित काल तक न खाने का उल्लेख है। वस्तुतः अचित्ताहार को कहीं भी दोष नहीं बताया गया है। यह सर्वत्र, अर्थापतित एवं विधिरूप में अनुमत माना जाता है। इसमें स्वाभिप्राय-पोषण या अविचारण का कोई प्रश्न नहीं है।
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