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नंदनवन
उल्लेख किया है। वर्षा ऋतु में अदलित द्विदल धान्य व पत्रशाक नहीं खाना चाहिये। सात प्रकार की अनन्तकाय वनस्पतियों में बीजोत्पन्न गेहूं आदि धान्य भी समाहित किये जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह वर्णन एक अतिरेक है। इसका समाहार नेमचंद्राचार्य ने पहले ही यह कह कर दिया था कि सभी वनस्पतियां दोनों प्रकार की होती हैं। अपने जन्म से अन्तर्मुहूर्त तक वे अनन्तकाय ही होते हैं, उत्तरवर्ती समय में इनमें विशेष भेद हो जाता है। आजकल यह भी माना जाता है कि ये सभी वनस्पति संक्रमित या रोगाक्रांत होने पर दूसरे सूक्ष्म जीवों का आधार बन जाते हैं। अतः आश्रयाश्रयी भाव से भी ये अभक्ष्यता की कोटि में आ सकते हैं।
ऐसा सम्भव है कि आशाधर के उत्तरवर्ती समय में जैसे-जैसे नये वनस्पतियों एवं खाद्यों का ज्ञान होता गया, उनकी भक्ष्याभक्ष्य कोटि पर विचार किया जाने लगा। आजकल इनके समेकीकृत वर्गीकरण के रूप में 22 अभक्ष्य माने जाते हैं। साध्वी मंजुला के अनुसार इनका सर्वप्रथम उल्लेख धर्मसंग्रह नामक ग्रंथ में मिलता है। दौलतराम के जैन क्रिया कोष में भी इनका नाम है। इन नामों को सारणी 3 में दिया जा रहा है। इससे स्पष्ट है कि प्रत्येक सूची में कुछ अन्तर है। जीवविचारप्रकरण में द्विदल का नाम नहीं है, इसके बदले कच्चे नमक का नाम है। इसी प्रकार, दौलतराम ने हिम तथा मृत्तिका जाति के पदार्थ छोड़ दिये हैं। इसके बदले 'धोल बड़ा' लिया है जो द्विदल या चलितरस का ही एक रूप है। इन अभक्ष्यों की जैन सम्प्रदाय में पर्याप्त मान्यता है। इनका आधार उपरोक्त पांच आधारों में से एकाधिक है। यहां यह भी स्पष्ट करना चाहिये कि दिगम्बर ग्रन्थों में अनेक कोटियों के पर्याप्त उदाहरण नहीं पाये जाते। साथ ही, इनके अनेक नामों से ऐसा लगता है कि ये समय-समय पर जोड़े गये हैं। यही कारण है कि अनेक नामों से पुनरावृत्ति दोष का आभास होता है।
ग सारणी 3 : विभिन्न ग्रन्थों में,अभक्ष्यों के रूप 1. धर्मसंग्रह जीव विचार दौलतराम अनन्तकाय विचार
प्रकरण 1-4. चार विकृतियां चार विकृतियां चार विकृतियां चार विकृतियां
मद्य मंस मांस मांस
मांस मधु
मधु मक्खन मक्खन मक्खन
मक्खन 5-9. पांच उदुंबर फल पांच उदुंबर फल पांच उदुंबर फल पांच उदुंबर फल 10. बर्फ
बर्फ 11. ओला
ओला ओला
ओला 12. विष
विष विष
विष 13. रात्रि भोजन रात्रि भोजन रात्रि भोजन रात्रि भोजन
मद्य
मद्य
मद्य
मधु
मधु
बर्फ
बर्फ
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