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जैन शास्त्रों में भक्ष्याभक्ष्य विचार : (471)
भी, मानव के हित में विष की परिभाषा किंचित् परिवर्धित होनी चाहिये। विष को मानव की कोटि के जीवों के लिये हानिकर पदार्थ ही मानना चाहिये, अन्यथा आज किस खाद्य पदार्थ में, जो कृषि से उत्पादित होता हो, कीटमार विष नहीं होता?
वस्तुतः आहार-सम्बन्धी भक्ष्याभक्ष्य प्रकरण में विषों का महत्त्व नहीं है, क्योंकि ये हमारे आहार के परम्परागत सूक्ष्म-मात्रिक घटक हैं और तनावों की तीव्रता की स्थिति में ही प्रायः लोग इनका सेवन करते हैं। इनका जीवननाशी होना ही इनकी अभक्ष्यता का निर्विवाद प्रमाण है। विविध अभक्ष्य पदार्थ
उपरोक्त अभक्ष्यों के अतिरिक्त दौलतराम ने अन्य अनेक अभक्ष्य बताये हैं। इनमें (1) सभी प्रकार के पुष्प, पत्तेवाली सब्जियां, आम की बोर, क्षीरी पदार्थ, हरितकाय एवं अन्य समाहित हैं। शाह ने बाइस अभक्ष्यों की नई सूची दी है। इसमें पूर्वोक्त 18 पदार्थों के साथ (1) खसखस (2) सिंघाडा नामक पदार्थ भी समाहित है। इन सभी का समाहरण अभक्ष्यों की पूवोक्त चार कोटियों में ही हो जाता है। उन्होंने मिलों का मैदा, सिके काजू, डिब्बा बंद दूध, मुरब्बा आदि, कोल्ड ड्रिंक्स और पेस्ट्री तथा एलोपैथिक दवाओं आदि को भी बहु-आरम्भ, जीवघात सम्भावना एवं चलितरसता के कारण अभक्ष्य माना है। रात्रि भोजन के समान प्रायः उन्हीं कारणों से होटल–भोजन और अनछने पानी की अभक्ष्यता भी प्रतिपादित की गई है।
वर्तमान युग में विभिन्न प्रकार के परिरक्षित एवं प्रक्रमित खाद्य पदार्थों की संख्या बढ़ रही है। इनकी भक्ष्याभक्ष्यता पर विद्धानों ने विचार प्रकट नहीं किये हैं। वे अभी भी बाईस अभक्ष्यों की शास्त्रीय चर्चा करते हैं। वस्तुतः इस वर्गीकरण में नाम–विशेष के स्थान पर जाति-विशेष की कोटियां होनी चाहिये। इस आधार पर लेखक ने इनकी चार कोटियां निरूपित की हैं। साधु एवं विद्वज्जनों से इस महत्त्वपूर्ण विषय पर समुचित मार्गदर्शन अपेक्षित है। यह नवीन आहार शास्त्रीय अन्वेषणों पर भी आधारित हो, तो नयी पीढी के लिये कल्याणकर होगा। भक्ष्य पदार्थ
विभिन्न अभक्ष्यों की चर्चा के बाद सैद्धान्तिक रूप से सामान्य श्रावक के लिये भक्ष्य पदार्थों पर भी कुछ विचार करना आवश्यक है। इनमें प्रथम तो सभी प्रकार के धान्य (17,18 या 24) आते हैं। ये हमारे लिये आटा-चावल (शर्करीय), विभिन्न दालें (प्रोटीन) और तिलहन (तेल) की सम्यक् पूर्ति करते हैं। वनस्पतियों में हम सम्भवतः कोई भी ताजी एवं हरी शाक नहीं खा सकते हैं। पांचवीं प्रतिमा पर तो यह कहा गया है कि सचित्त को विभिन्न विधियों से अचित्त कर खाया जा सकता है, पर इसके पूर्व ऐसा कोई नियम
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