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जैन शास्त्रों में भक्ष्याभक्ष्य विचार : (469)
औषध बनते हैं। इस प्रक्रिया में वे सभी खनिज निर्जीव हो जाते हैं। अन्य अभक्ष्यों की तुलना में इनकी अभक्ष्यता की चर्चा इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं माननी चाहिये। वैज्ञानिक दृष्टि से भी, ये लवण सजीव नहीं माने जाते। अतः जीवघात का तर्क इनकी अभक्ष्यता के लिये लागू नहीं होता। शाह ने बताया है कि पकाये हुए आहारों में काम में लिये गये लवण तो अचित्त हो ही जाते हैं, पर अचार और औषधि आदि में प्रयुक्त करने के लिये इन्हें अग्निपक्व कर लेना चाहिये। इनके अचित्त बने रहने की सीमा बरसात में सात दिन, जाड़ों में पन्द्रह दिन और गर्मी में एक माह मानी गई है। 21. रात्रिभोजन
समान्यतः रात्रि (सूर्यास्त से सूर्योदय) में बनाये गये एक या अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थों का भक्षण रात्रिभोजन कहलाता है। इसके अन्तर्गत दिन में बनाये भोज्यों का रात्रि में आहार सारणी 6 में दिये गये विभिन्न कारणों से शास्त्रों में गर्हित माना जाता है।
रात्रिभोजन की अभक्ष्यता या त्याग का उद्देश्य जीवन में अहिंसक भावनाओं को प्रेरित करना है। कहीं इसे व्रतों में रखा गया है और कहीं इसे छठां व्रत मानने की भी भूमिका है। गृहस्थों के लिये यह चर्चा उत्तरवर्ती विकास है । यह धारणा उन दिनों प्रचलित की गई थी, जब रात्रि में केवल तैल दीप प्रकाशित होते थे और प्रायः स्थान अंधकाराच्छन्न रहता था। ऐसे ही कुछ अप्रत्याशित दुर्घटनाओं ने आलोकित पान-भोजन की भावना की उत्थानिका की होगी। चूंकि रात में सूर्यालोक नहीं रहता, अतः पानभोजन का त्याग स्वयमेव माना जाने लगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि सूर्यप्रकाश में जीवाणुनाशन के गुण रहते हैं, अतः दिन में बने भोजन में सामान्य एवं विकारी जीवाणु-रहितता का गुण तो होता है, साथ ही अनेक दुर्घटनायें होने से बच जाती हैं। विद्युत के प्रकाश के उपयोग से रात्रिभोजन के शास्त्रीय दोश काफी मात्रा में कम हो रहे हैं। फिर, विद्युत-विहीन अधिकांश ग्रामीण भारत के लिये तो अनेक दोष अभी भी बने हुए हैं। इसके अतिरिक्त, स्वास्थ्य की दृष्टि से रात्रिभोजन की अभक्ष्यता की मान्यता में कोई कमी नहीं आने पाई है। इसीलिये आज भी यह गुण जैनत्व के चिह्न के रूप में प्रतिष्ठित है।
सारणी-6-रात्रिभोजन के सम्बन्ध में शास्त्रीय मान्यताएं 1. रात्रिभोजन में द्रव्य–हिंसा और भाव-हिंसा दोनों होते हैं। 2. रात्रिभुक्ति में दिवाभुक्ति की अपेक्षा राग, मोह, रुचि अधिक होती है।
प्रतिबबन्ध, नियंत्रण के कारण रुचि और आवश्यकता और तीक्ष्ण हो जाती है।
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