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जैन शास्त्रों में भक्ष्याभक्ष्य विचार : (447)
हो सकता है। इसलिये शास्त्रों में इन्हें सामान्यतः अभक्ष्य ही, अहिंसक दृष्टि से, बताया है। सरस' ने सभी वनस्पतियों को चौदह रूपों में बताया है। जीव विचार प्रकरण के अनुसार, प्रत्येक वनस्पति फल, फूल, त्वचा, मूल, पत्र और बीज के रूप में पाई जाती है और इसका भक्ष्यभाग प्रायः पृथ्वी, मिट्टी, भूमि या जल-तल के ऊपर ही होता है। ये 12 प्रकार की होती है। इसके विपर्यास में, प्रायः अनन्तकाय वनस्पति मिट्टी के अन्दर उत्पन्न होते हैं, कन्द रूप में होते हैं। इनके 20 भेद हैं। इसके नाम व उदाहरण सारणी 2 में दिये गये हैं। इससे पता चलता है कि सामान्यतः प्रत्येक वनस्पति की 1, 2, 6, 7, 9 एवं 12 कोटियों के 213 वनस्पतियों के विभिन्न अवयव हमारे लिये भक्ष्य माने जा सकते हैं। पर इनमें से बहुबीजी 33 प्रकारों को दसवीं सदी के बाद अभक्ष्य ही बताया गया है। इनमे तेंदू, कैंथा, बेल, बिजौरा, आंवला, फनस, अनार, पंचोदुंबर, पीपर, सरसों, नीम और अनेक अप्रचलित वनस्पतियां समाहित हैं। अनेक वृक्षों की त्वचादि खाद्य के रूप में तो नहीं, पर औषधों के काम आती है। इनमें कुछ (उंदुंबर) की अभक्ष्यता तो अनेक कारणों से मानी गई है, पर अनेकों के उपयोग सामान्य हैं चाहे वे सैद्धान्तिक दृष्टि से अभक्ष्य ही क्यों न हों । थैकर ने बताया है कि अनन्तकायों के 49 भेदों के बावजूद, इस कोटि की 32 सुज्ञात वनस्पतियां हैं जो सैद्धान्तिक दृष्टि से अभक्ष्य हैं। इनमें कुछ ऐसे पदार्थ और कोटियां हैं जो दोनों भेदों में आती हैं। उदाहरणार्थ - विभिन्न पत्र रूप में शाक या भाजियां प्रत्येक वनस्पति की हरित कोटि में आती हैं। इनका अनन्तकायों में अनेक नामों से समाहरण है। मूली, हरित और कन्द - दोनों में है। बेल की कोटि दोनों ओर है। पर इनके अन्तर्गत वनस्पतियों के नाम भिन्न हैं।
सारणी 2: प्रत्येक और साधारण वनस्पतियाँ ___ अ. प्रत्येक वनस्पति : 12
ब. अनन्तकाय वनस्पति : 20 . 1. वृक्ष
1. कन्द प्याज, लहसुन,
आलू आदि (अ) एकबीजी-आम आदि 30 2. अंकुर अंकुरित दालें गुच्छ : बेंगन, अरहर आदि 33 3. किसलय नई रक्तिम पत्तियां गुल्म (झाड़ीदार) : गुलाब, 24 4. भूमिस्फोट कुकुरमुत्ता मोगरादि वलय (गोलाकार) : ताड़, चीड़ 16 5. आर्द्रकत्रिक अदरख, हल्दी, आदि
कचूर लता : पद्म, नाग आदि
10 6. गाजर
गाजर बेल (वल्ली) : पान, तरबूज, 41 7. मौथा मौथा, नागर मौथा
जटामासी आदि 7. गांठ : गन्ना, वेत्र, वंशादि 19 8. बथुआ की बथुआ, पालक
भाजी
आदि
8.
तृण : दर्भ, कुश, अर्जुन आदि
18 9.
थेग
भाजीदार कन्द
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