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(1) मन (4) मन-वचन मन-वचन-काय के
(1) कृत
(2) कारित एवं
(4) कृत- कारित ( 5 ) कारित - अनुमोदित (7) कृत- कारित - अनुमोदित
के सात-सात रूपों से 7 × 7 = 49 भंग हुए। इनको भूत, भविष्य और वर्तमान के तीन आधारों पर लेने से 49 x 3 = 147 रूप हो जाते हैं।
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यहां महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सामान्यजन तो व्यावहारिक हिंसा के रूप में ही हिंसा को मानता है । भावात्मक हिंसा तो वह किंचित् गंभीर चिंतन या उपदेश से ही समझ पाता है । अस्तु, हिंसा या अहिंसा के विवरण से ऐसा प्रतीत होता है कि शास्त्रों में हिंसा की कोटि या परिमाणात्मकता नहीं निरूपित की गई है। इस पर कुछ विचार यहां दिये जा रहे हैं। वस्तुतः यह स्पष्ट है कि हिंसा की संपूर्ण प्रक्रिया में निम्न चरण सम्भव हैं : सारणी 1 : हिंसा की प्रक्रिया के चरण
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(2) वचन
(5) मन - काय
5
6
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हिंसा का समुद्र : अहिंसा की नाव : (371)
(3) काय
(6) वचन - काय
(3) अनुमोदित तथा (6) कृत - अनुमोदित एवं
चरण
मन या भावों के दो स्तर होते हैं: विचार और संकल्प
वचन का तो एक ही स्तर होता है :
क्रिया का भी एक ही स्तर होता है :
कृत तो स्वयंकृत ( मन + काय) होता है, अतः उसके दो स्तर होते हैं :..
कारित में कम-से-कम दो व्यक्ति होते हैं: (भाव - व्यक्ति, क्रिया - व्यक्ति)
अनुमोदित में सामान्यतः तीन व्यक्ति होते हैं
( भाव व्यक्ति + समर्थक व्यक्ति + क्रिया व्यक्ति) :
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स्वैच्छिक मान
2 (1+1)
1
(3+1+1)=5
हम यह जानते हैं कि भावात्मक हिंसा के दो चरण होते हैं: (1) विचार और (2) संकल्प | वचनात्मक और क्रियात्मक हिंसा का एक-एक ही चरण होता है : (1) कथनी या (2) करनी । इसी प्रकार, सामान्यतः कृत का एक ही चरण होता है, पर वह भावात्मक प्रक्रिया पर भी निर्भर करता है । साधुओं के लिये कृत एकचरणी होता है। शास्त्रों के अनुसार, भावरहित 'कृत' अल्पपापबन्धी होता है । पर यह साधुओं या उत्कृष्ट श्रावक के लिये ही प्रयोगसाध्य है । हम यहां सामान्यजन की बात कर रहे हैं । कारित में कम से कम दो व्यक्ति होते हैं। उनमें से एक के भाव का चरण भी समाहित होता है। अतः इसमें एक का मन-वचन एवं दूसरे का काय समाहित होता है। इसी प्रकार, अनुमोदन में कम से कम तीन व्यक्ति समाहित होते हैं और उसमें पांच
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(
2 + 1) = 3
(3 + 1) = 4
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