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नंदनवन
देती हैं। इनमें वृद्धि अल्प होती है। यह पाया गया है कि ये किरणें प्रायः 80 प्रतिशत जीवाणुओं का अपहासन करती हैं । फलतः वे
2.5x 0.8 x 10 x 103 = 2 x 10 यूनिट हिंसा को फलित करती हैं । इस प्रकार, खुले शौचालय में मलत्याग की क्रिया में,
1.62x101 +2x10% = 3.62 x 101 यूनिट हिंसा होती है। यह प्रक्रिया वायुजीवी होती है। अतः वायु के ऑक्सीजन के कारण इसमें कुछ उच्चतर कोटि के स्थूल जीवाणु भी उत्पन्न होते हैं। इनमें से कुछ नष्ट होते हैं और कुछ मिट्टी के लिये लाभकारी होते हैं। इनके हिंसन से कुछ अतिरिक्त हिंसा-यूनिट भी अर्जित होते हैं। यदि हम सूक्ष्म का मान 1021 मानें और स्थूल का मान (वर्तमान सूक्ष्मदर्शी की दृश्यता के आधार पर) 10-10 मानें, तो उनके हिंसन में निगोदिया के समान सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या, तुलनात्मकतः 10" गुनी अधिक होगी। तथापि, इनकी संख्या निश्चित नहीं होती । इनपर प्रयोग भी नहीं किया गया है। फिर भी, उन्हें संख्यात के रूप में तो माना ही जा सकता है।
101 x 1021 (संख्यात) x 10-3 ~1029 इसके विपर्यास में, यदि मलत्याग-क्रिया स्वक्षालित शौचालय में की जाय, तो वहां मल, जल-तल पर गिरता है और उसे प्रायः अवायुजीवी वातावरण में जल क्षालित किया जाता है। इससे वह तनुकृत हो जाता है और उसमें विद्यमान 2.5 x 108 बेक्टीरिया, मल को अपघटित कर वृद्धि को प्राप्त होते हैं। जब तक मल उन्हें खाद्य देता है, वे बढ़ते हैं और जीवित रहते हैं। मल-विघटन के बाद,
1. अपने पोषक तत्त्वों के अभाव से 2. सैप्टिक टैंक में वातावरण के परिवर्तन से 3. विषाक्त या संक्रामक घटकों की उपस्थिति से
उनकी वृद्धि क्षीण होने लगती है एवं वे या तो निर्जीव हो जाते हैं या बहिःप्रवाह में चले जाते हैं। यह पाया गया है कि इस प्रक्रिया में समवातावरण के कारण उच्चतर कोटि के जीवाणु पैदा नहीं होते और मलगत अपहासन भी प्रायः 50 प्रतिशत होता है। निर्जीवन की क्रिया उपरोक्त कारणों से तो होती ही है, प्रबल कम्पनों या उबालने से भी होती है।
इस प्रक्रिया में बैक्टीरियाओं की कोशिकीय दीवार भग्न हो जाती है और साइटोप्लाज्मिक अंश भी अपघटित होकर माध्यम में ही विलयित हो जाता है। फलतः समग्र बेक्टीरिया की हानिकारिता समाप्त हो जाती है। स्वक्षालित शौचालय में बैक्टीरियाओं का इस प्रकार निर्जीवन अल्पमात्रा में ही होता है।
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