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(406) :
नंदनवन
अब हम उपरोक्त मान्यताओं के परिप्रेक्ष्य में कर्मवाद के वैज्ञानिक पक्षों पर चर्चा करेंगे।
कर्मवाद का वैज्ञानिक निरूपण: (1) विश्व के घटक
जैन धर्म के अनुसार, विश्व के दो रूप हैं: (1) भौतिक और (2) आध्यात्मिक । दोनों में ही जीव और अजीव विश्व के प्रमुख घटक हैं । जीव की परिभाषा विचार - विकास के साथ बदली है :
- शरीरी जीव
1. चेतन या संसारी जीव 2. चेतन जीव
आत्मा + शरीर (कर्म)
या, कर्म
चेतन जीव
-
आत्मा मूर्त – अमूर्त वर्तमान धारणा के अनुसार, हमारा व्यक्तित्व या जीवत्व मूर्तकर्म और अमूर्त आत्मा के संयोग का फल है। अमूर्त आत्मा के विषय में विज्ञान अभी मौन है, पर कर्म की शास्त्रीय परिभाषाओं का वह परीक्षण कर सकता है। (2) कर्म की परमाणुमयता: कर्म- यूनिट का विस्तार :
कर्म के भौतिक सूक्ष्म कणमय स्वरूप के विषय में राजवार्तिक में बताया गया है कि अनन्तानन्त चरम परमाणु ( निश्चय परमाणु) मिलकर कर्म-वर्गणाओं का निर्माण करते हैं और कर्म का रूप अनन्तानन्त कर्म - परमाणुओं से मिलकर बनी अनन्तानन्त कर्म-वर्गणाओं से बनता है, अर्थात
1 कर्म यूनिट
=
=
=3
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1=1
अनन्तानन्त परमाणु x अनन्तानन्त वर्गणा
(अनन्त)' परमाणु वर्गणा
शास्त्रों के अनुसार, वर्गणाओं की उत्तरोत्तर स्थूलता के आधार पर अ. तैजस शरीर वर्गणा
=.
(अनन्त) परमाणु
=
(अनन्त) परमाणु
ब. कार्मण शरीर वर्गणा फलतः किसी भी कर्म-यूनिट में अनन्त परमाणु- समुच्चय होते हैं, फिर भी वे अदृश्य होते हैं। इससे उनकी सूक्ष्मता का अनुमान लगाया जा सकता है। यह सूक्ष्मता उनकी ऊर्जामयता चतुस्पर्शी स्वरूप को व्यक्त करती है। जितनी अधिक सूक्ष्मता होगी, ऊर्जा क्षमता भी उतनी ही अधिक होगी। कर्म - यूनिटों की यह साइज उन्हें ग्रंथिस्राव एवं जीनों से भी पर्याप्त सूक्ष्मतर बनाती है।
कर्म यूनिटों के विस्तार के आधार पर परमाणुओं की सूक्ष्मता का भी अनुमान लगाया जा सकता है। यदि अनन्त की परिभाषा उत्कृष्ट असंख्यात + 1 मान ली जाय, तो
-
=
=
अनन्त (न्यूनतम मान) या, कर्म-यूनिट 1 / (अनन्त) 1
=
=
उत्कृष्ट असंख्यात + 1
( 1 / उत्कृष्ट असंख्यात + 1)4
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