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हिंसा का समुद्र : अहिंसा की नाव : (375) वहां यह भी बताया गया है कि हिंसा को यथाशक्ति छोड़ना या अल्पीकृत करना चाहिये।
ऐसा प्रतीत होता है कि दिगम्बर ग्रंथों की तुलना में, प्रश्नव्याकरण में हिंसा-सम्बन्धी सूचनायें अधिक हैं। वहां हिंसा की परिभाषा और फल आदि के आधार पर हिंसा के 22 नाम दिये गये हैं। इसी प्रकार, 'प्राणिबध' रूप परिभाषा के आधार पर तीस अन्य नाम दिये गये हैं जिनमें शब्दभिन्नता अधिक है, अर्थभिन्नता कम है। संयमविहीन पापी, हिंसक प्राणी तत्कालीन ज्ञात निम्न प्रकार के जीवों का बध या पीड़न करते हैं : ... 1. 15 प्रकार के जलचर 2. 40 प्रकार के थलचर 3. 8 प्रकार के सादि उर : परिसर्प 4..14 प्रकार के भुज परिसर्प (गोंच, नेवला आदि) 5. 61 प्रकार के नभचर जीव (तोता, मैना आदि) 6. अनेकानेक प्रकार के 2,3,4 इंद्रिय के जीव 7. अनेकानेक प्रकार के पंचेन्द्रिय जीव 8. विभिन्न प्रकार के एकेन्द्रियजीव
उच्चतर कोटि के विभिन्न जीवों की हिंसा विभिन्न प्रकार की उपयोगी या अनुपयोगी 33 वस्तुओं (चमड़ा, चर्बी, दांत, हड्डी, विष, विषाण, मधु, वस्त्र, शरीर-सुख आदि) को प्राप्त करने के लिये की जाती है। इनको पीड़ा पहुँचाने के साथ ही, मनुष्य जाने-अनजाने पांच प्रकार के एकेन्द्रिय जीवों को भी विभिन्न कारणों से पीड़ा पहुँचाते हैं। उदाहरणार्थ, पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा विभिन्न प्रकार के आवास-निवास, साधुओं के आराम और विहार, छतरी एवं स्मारक, देवालय, मंडप, विभिन्न प्रकार के पात्र आदि कम-से-कम 40 वस्तुओं के बनाने में की जाती है। जलकायिक जीवों की हिंसा स्नान, पान, भोजन, वस्त्र-प्रक्षालन, शौच और शुद्धि आदि के लिये की जाती है। तेजस्कायिक जीवों की हिंसा भोजन पकाने-पकवाने, दीपादि जलाने तथा प्रकाश करने के लिये की जाती है। वायुकायिक जीवों की हिंसा पंखा झलने, धान्य फटकने आदि में की जाती है। वनस्पतिकायिक जीवों की हिंसा सर्वाधिक 55 कारणों से की जाती है जिनकी निम्न कोटियां हैं : (1) भवन निर्माण (2) भोजन-प्राप्ति एवं पाक (3) कृषि-बखर आदि (4) वाद्य-यंत्र (5) स्थल-यान-वाहन (6) देवालय आदि (7) पुष्पमालायें (8) शयनासन एवं गृह-सज्जा (७) साधुओं के लिये फलक आदि (10) गृहस्थी के लिए अनेक उपकरण-मूसल आदि ।
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