________________
(382): नंदनवन
इसके विपर्यास में, यदि स्वचालित सुलभ या अन्य शौचालय के रूप में सेप्टिक या अन्य कंपोजिंग विधि से मल-विसर्जन किया जाय, तो शीतलन, तनुकरण तथा अवायुजीवी प्रक्रिया के कारण मल में उच्चतर कृमि नहीं बनते, वह उपयुक्त खाद में भी परिणत हो जाता है एवं उसके जीवाणु और भी अधिक सूक्ष्म जाति के होते हैं । फलतः स्वचालित या सुलभ शौचालय अहिंसा की दृष्टि से अधिक स्वीकार्य होने चाहिये। इस आधार पर इस प्रक्रिया में हिंसामान भी अल्प होगा। सामान्यतः साधुत्व की ओर बढ़ने वाले व्यक्ति इस मत से सहमत नहीं दिखते, और वे बेक्टीरिया को दो इंद्रिय तथा प्रतिरोधी शौचालयों में सूर्य - रश्मियों के अन्तगर्मन न होने के कारण अधिक बेक्टीरिया होने तथा उनकी विराधना का तर्क देते हैं। श्री डी. के. गुप्ता और अन्य जैन वैज्ञानिकों ने प्रयोगसिद्ध मत की उपेक्षा परीक्षा-प्रधानी जैनत्व के लिये रुचिकर प्रतीत नहीं होती । डा. ए. के. जैन के अनुसार, नलकूप के जल में भी, सामान्य कूपजल की तुलना में कम बेक्टीरिया होते हैं । स्वास्थ्य की दृष्टि से यह अधिक सुपेय है। उबले हुए या उष्ण जल की बात अलग है। इस विवेचन से यह तो स्पष्ट होता है कि वायुरोधी वातावरण मल- विसर्जन के लिये अधिक अहिंसक है। यह सम्भव है कि अहमदाबाद में स्थापित होने वाली एक जैन संस्था इसी विषय पर अन्वेषण कर सही तथ्य बताये ।
(3) मूत्र - विसर्जन जन्य हिंसा
मल के समान मूत्र - विसर्जन के सम्बन्ध में भी सूचनायें अपेक्षित हैं । यह माना जाता है कि मूत्र का परिमाण हमारे आहार की प्रोटीनी कोटि पर निर्भर करता है। इसका दैनिक उत्सर्जन प्रायः 1200 मिली. होता है । उत्सर्जन के समय इसका तापमान शरीर तापमान के समान 30° सें. होता है जो वातावरणीय तापमान से उच्चतर होता है। इसकी संरचना में विविध कोटि के नाइट्रोजन के अतिरिक्त कुछ गंधक (कीटाणुनाशी) भी होता है। खुली भूमि में उत्सर्जन करने पर यह भूमि की विभिन्न पर्तों में अवशोषित होता है और अम्लता, तापमान तथा गंधक के कारण भूमि में विद्यमान जीवाणुओं तथा अन्य जीवों की विराधना करता है। इसमें लगभग तीन प्रतिशत ठोस होते हैं। यदि 1 मिली. मूत्र न्यूनतम 1 घन सेमी. भूमि में अवशोषित होता है, तो मूत्र के माध्यम से -
1200 x 10° = 1.2 x 10 12
जीवाणुओं का पीड़न सम्भावित है। इसके विपर्यास में, यदि हम स्वचालित शौचालयों में मूत्र उत्सर्जन करें, तो शीतलन एवं तनुकरण के कारण जीवाणु - विराधना कितनी होगी, यह परिकलन तो नहीं किया गया है पर यह उक्त परिमाण से 50 प्रतिशत कम होगी, ऐसा अनुमान है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org