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मन्त्र की साधकता : एक विश्लेषण : (361)
अभिव्यक्त करने में सहायक होती है। कम्पन ऊर्जा का प्रहार जितना ही तीव्र होगा, हमारी आंतरिक ऊर्जा की अभिव्यक्ति भी उतनी ही उन्नतिमुखी होगी ।
प्रत्येक वर्ण की ध्वनि विशिष्ट होती है, अतः उसके कम्पन भी विशिष्ट होते हैं। ये कम्पन ही वर्ण की ऊर्जा को निरूपित करते हैं क्योंकि कम्पन ऊर्जा के समानुपाती होते हैं। यही नहीं, मन्त्र शास्त्रियों ने वर्णों - स्वर ( 16 ), व्यंजन (33) और अर्द्धस्वरों को मातृकाक्षर (अ-क्ष) एवं बीजाक्षर (क-ह) के रूप में विभाजित किया है। प्रत्येक मन्त्र में इन दोनों के, पल्लव (लिंग, नमः, स्वाहा आदि ) शब्दों का भी समावेश होता है। इस प्रकार प्रत्येक मन्त्र इन तीनों प्रकार के घटकों का विशिष्ट समुच्चय होता है। प्रत्येक वर्ण की विशिष्ट, अपरिमित तथा दिव्य शक्ति होती है। यह प्रशस्त, अप्रशस्त एवं उदासीन - किसी भी कोटि की हो सकती है। इन वर्णध्वनियों की शक्ति ही मन्त्र में काम आती है। इस शक्ति का पूर्ण साक्षात्कार ही मन्त्र - साधना का लक्ष्य होता है । यह ध्वनि शक्ति शरीर, मन, विश्व, ग्रह, तथा अग्नि से अन्योन्य रूप से सम्बन्धित है । यह शक्ति हमारे सात चक्रों (मूलाधार से सहस्रार तक) और चैतन्य के विविध स्तरों (चेतन, अवचेतन और अचेतन) को प्रभावित करती है । मन्त्र सम्बन्धी वर्णों के शक्ति-उद्घाटन के ज्ञान की प्रक्रिया- 'मातृका विज्ञान' कहलाती है।
'मातृका' शब्द वस्तुतः 'मात्रा' (उच्चारण के समय का परिमाण) शब्द का व्युत्पन्न है । यह पाया गया है कि यदि स्वर के उच्चारण में 'अ' समय की मात्रा लगती है, तो व्यंजन के उच्चारण में प्रायः 'अ / 2' समय की मात्रा लगती है (स्वरों से आधी ) । इनके उच्चारण के समय घटाये - बढ़ाये जा सकते हैं; ह्रस्वध्वनि, दीर्घध्वनि, प्लुतध्वनि विस्तारित ध्वनि आदि । उच्चारण-समयों से कम्पनों की प्रकृति में अन्तर पड़ता है। इसी कारण अनेक धर्मशास्त्र शब्द-शक्ति को आदि शक्ति ही कहते हैं। |
मन्त्र की शक्ति का निर्धारण
विशिष्ट वर्ण-समूहों से निर्मित मन्त्रों की ऊर्जा का गुणात्मक विवरण शास्त्रों में पाया जाता है। इस ऊर्जा के अनेक भौतिक और आध्यात्मिक लाभ भी वहां बताये गये हैं । इस ऊर्जा को परिमाणात्मक रूप देना किंचित दुरूह कार्य है। फिर भी, यह तो माना ही जा सकता है कि मौन या वाचिक मन्त्रोच्चारण के समय, ध्यान के समान, हमारे मस्तिष्क की तरंगों की प्रकृति में अन्तर पड़ता है। वे बीटा-रूप से एल्फा रूप में परिणित होने लगती हैं जो मानसिक स्थिरता की प्रतीक हैं। मस्तिष्क के तरंग रूप में परिवर्तन के साथ उसके चारों ओर विद्यमान आभामण्डल के रंग में भी परिवर्तन होता है जो काले से सफेद की ओर बढ़ता हुआ प्रशस्त मनोवृत्ति की ओर सूचना देता है। इन दोनों ही परिवर्तनों का ज्ञान प्रयोगगम्य है और ध्यान की
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