________________
जीव की परिभाषा और अकलंक : (335)
इस आधार पर जीव और आत्मा सह-सम्बन्धित हो गए हैं। जीव को आत्मा की एक दशा मान लिया गया। जब जीव को देहबद्ध रूप में माना जाता है, तब उसकी परिभाषा ऐसी होती है जो आत्मा पर लागू नहीं भी हो। जब उसे देहमुक्त रूप में माना जाता है, तब वह आत्मा हो जाता है और परिभाषा अधिक मूलभूत हो जाती है। अनेक आचार्य एक ही वस्तु की भिन्न-भिन्न परिभाषाओं को विभ्रमण मानते हैं और वे जीव और आत्मा की परिभाषाओं को मिश्रित रूप में प्रस्तुत करते हैं जिनमें मूर्त और अमूर्त या द्रव्य और भाव-दोनों प्रकार के लक्षण समाहित होते हैं। जैन लक्षणावली में जैन शास्त्रों से जीव की परिभाषा के 52 सन्दर्भ दिये गये हैं।
जीव की परिभाषा के सन्दर्भ में यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि शास्त्रों में जीवों के सम्बन्ध में विवरण तो पर्याप्त हैं, पर्यायवाची भी अनेक बताए गए हैं, पर इसकी परिभाषा कुछ ही ग्रन्थों में पाई जाती है। भगवती और प्रज्ञापना में जीव के पॉच रूप बताए गए हैं :शरीर या भौतिक रूप : 1. नारकीय, कर्म, शरीर 2. शरीर, अवगाहन, योनि,
श्वासोच्छवास, आहार, प्रविचार, भाषा, जन्म-मरण, आयु । ज्ञानात्मक रूप : 1. दर्शन, ज्ञान, उपयोग 2. इन्द्रिय, उपयोग, संज्ञा/ मन संवेग/मनोभावी रूप : 1. लेश्या, दृष्टि, संज्ञा 2. कषाय, लेश्या, सम्यक्त्व। क्रियात्मक रूप : 1. योग 2. योग, संयम | संवेदनात्मक/ अनुभूति : सुख-दुःख, शीत-उष्ण, वेदना आदि । ___ "जीव पर्याय/परिणाम" के रूप में ये एकीकृत रूप "जीव' (सदेह आत्मा) के ही हो सकते हैं। प्रारम्भ में मार्गणा स्थानों को भी "जीव स्थान" ही कहा जाता था। उन्हें भी इन 5 रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
इस प्रकार, प्रारम्भ में जीव का स्वरूप पंचरूप था। सभी रूपों की समकक्ष मान्यता रही है। उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र में प्रायः इन सभी (शरीरादि, मनोभाव, उपयोग, योग एवं वेदना) रूपों के माध्यम में जीव का ही वर्णन किया है। लेकिन जब जीववाद, आत्मवाद में परिवर्द्धित हुआ, तब इनमें से उपयोगात्मक परिभाषा मुख्य हो गयी और अन्य परिभाषाएँ द्वितीय कोटि में चली गई। आत्मा (शुभ या शुद्ध?) स्वामी हो गया और जीव बेचारा दास हो गया। ____ आगमोत्तर काल के शास्त्रों में प्राप्त जीव की परिभाषाओं को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है : 1. 'जीव' शब्द पर आधारित परिभाषाएँ - प्राण, आयु आदि/मनोभाव ।। 2. जीव के ज्ञानात्मक/आध्यात्मिक स्वरूप पर आधारित परिभाषाएँ- ज्ञान,
दर्शन, सुख-दुःख, वीर्य, उपयोग और । 3. जीव के भौतिक एवं आध्यात्मिक स्वरूप पर आधारित परिभाषाएँ या मिश्र
परिभाषाएँ - प्राण और उपयोग ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org