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नंदनवन
9. प्राचीन आचार्यों ने एवं टीकाकारों ने अपने-अपने समय में आचार एवं
विचार पक्षों की अनेक पूर्व मान्यताओं का संरक्षण, पोषण व विकास किया है। अतः सभी शास्त्रीय मान्यताओं की अपरिवर्तनीयता की धारणा
ठोस तथ्यों पर आधारित नहीं है। 10. इस अपरिवर्तनीयता की धारणा के आधार पर प्रयोग-सिद्ध वैज्ञानिक
तथ्यों की उपेक्षा या काट की प्रवृत्ति हमारे ज्ञान प्रवाह की गरिमा के
अनुरूप नहीं है। __ अत: हमें अपने शास्त्रीय वर्णनों, विचारों की परीक्षा कर उनकी प्रामाणिकता का अंकन करना चाहिये, जैसा वैज्ञानिक करते हैं। इस परीक्षण विधि का सूत्रपात आचार्य, समन्तभद्र, अकलंक आदि ने सदियों पूर्व किया था। वर्तमान बुद्धिवादी युग परीक्षणजन्य समीचीनता के आधार पर ही आस्थावान बन सकेगा। आचार्य कुन्दकुन्द भी यह निर्दिष्ट करतें हैं। आचार्य वीरसेन भी यही मानते हैं।
सन्दर्भ 1. मालवणिया, दलसुख; प. कै.चं. शास्त्री अभि. ग्रन्थ, 1980, पेज 138 2. मुनि नंदिघोष; तीर्थकर, 17,3-4,1987, पेज 63 3. ज्योतिषाचार्य नेमिचन्द्र; तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा-3, विद्वत्
परिषद, दिल्ली, 1974, पे. 296 4. आर्यिका ज्ञानमती जी; मूलाचार का आद्य उपोद्धात-1, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली
1984, पेज 18 5. ज्योतिषाचार्य, नेमिचन्द्र; महावीर और उनकी आचार्य परम्परा-2, पूर्वोक्त, 1974, पेज
251 6. उपाध्याय, अमर मुनि; पण्णा समिक्खए धम्म, वीरायतन, राजगिर, 1987 | 7. देखिए निर्देश 5 पेज 8, पेज 19 | 8. आचार्य बट्टकेर; मूलाचार- 1 भारतीय, ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1984, पेज 132 | 9. देखिये निर्देश 5 पेज 28-1691 10. संन्यासी राम; 'श्रमण', पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी, 38,6,1987 पे 27, 11. नीरज जैन; "जैन गजट' (साप्ताहिक), 92, 41-42, 1987, पेज 101 12. देखिये निर्देश 5 पेज 771 13. न्यायाचार्य, महेन्द्रकुमार; जैन दर्शन, वर्णी ग्रन्थमाला, काशी, 1966, पेज 268 |
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