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नंदनवन
ही हुई है। इस सूची में जैन भूगोल एवं पत्रकारिता विषय नये जुड़े हैं पर संगीत विषय अभी भी छूटा हुआ है। आगमों एवं अन्य ग्रन्थों में स्फुट रूप से ये विषय पर्याप्त मात्रा में वर्णित हैं। इन विषयों पर और अधिक शोध की आवश्यकता है। जैन परम्परा की दृष्टि से ये विषय ऐतिहासिक हैं, पर इनके आधार पर ही वर्तमान प्रगति का मूल्यांकन किया जा सकता है। विज्ञान - जैन आगम, आगम-तुल्य, धर्म, दर्शन एवं विशिष्ट ग्रन्थों में भौतिक जगत् से सम्बन्धित पर्याप्त सामग्री पाई जाती है। इस कोटि में अनेक विषय समाहित होते हैं : भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान, आहार विज्ञान, औषध/चिकित्सा विज्ञान और गणित आदि। सामान्यतः यह पाया गया है कि विभिन्न ग्रन्थों में औसतन एक चौथाई से अधिक ये विषय किसी न किसी रूप में पाये जाते हैं। इसका विषयवार एवं आधुनिक दृष्टि से तुलनात्मक अध्ययन आवश्यक है। इन विषयों में शोध का अनुपात 2 प्रतिशत से भी कम है, यह शोचनीय है। यह स्वीकार करने में अनापत्ति होनी चाहिये कि इन विषयों से सम्बन्धित शास्त्रीय विवरण तत्कालीन ज्ञान के निरूपक हैं। तथापि, इनकी ऐतिहासिक एवं समीक्षात्मक प्रामाणिकता नयी पीढ़ी की धार्मिक आस्था को बलवती बना सकती है।
आलोच्य दशक में इस क्षेत्र में पिछले दशक के समान ही शोध हुए हैं। पर इस बार सैन्य विज्ञान, सृष्टिविद्या, पुस्तकालय विज्ञान के विषय नये जुड़े हैं। गणित, ज्योतिष एवं परमाणुवाद एवं आयुर्वेद परम्परागत शोध के विषय हैं। इस क्षेत्र में शोध की अनेक सम्भावनायें हैं। विशेषतः वर्तमान वैज्ञानिक प्रगति की दृष्टि से तुलनात्मक अध्ययन हमें अपनी महत्त्वपूर्ण स्थिति को प्रदर्शित करेगा और हम जैन धर्म की वैज्ञानिकता को परिपुष्ट कर सकेंगे। इस दिशा में शोध को स्पष्टतः प्रेरित करने के लिये वरीयता से छात्रवृत्तियां प्रदान करना चाहिये। इस दिशा में मार्गदर्शन के लिये उपाधि-निरपेक्ष शोध-निदेशक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। वे ही अभी इन क्षेत्रों में स्फुट काम कर रहे हैं। वस्तुतः हमारे विद्यालयों में एवं प्राचीन या अर्वाचीन महाविद्यालयों में विज्ञान से सम्बन्धित विषय नाम-मात्रेण ही पढ़ाये जाते हैं। अतः विद्यार्थियों की रुचि इस दिशा में विकसित नहीं हो पाती है।
यह बताया जा चुका है कि इस क्षेत्र में उपाधि-निरपेक्ष शोध पर्याप्त हो रहे हैं। मध्य प्रदेश तो इस दिशा में प्रारम्भ से ही अग्रणी रहा है। अब इस क्षेत्र में अनेक दिगम्बर और श्वेताम्बर साधु व विद्वान सामने आये हैं जिन्होंने अनेक शोध-लेख, पुस्तकें व पुस्तिकायें लिखी हैं। इनका कुछ रूप कुछ
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