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प्रतिमा पूजणे की सरधान छे । मुख बंधणे वाल्या को पाखंडी निन्हव कुलिंगी मिथ्यादृष्टी जाणता हे । इसका संग करणां योग्य नही । पहिले गुणठाणेका धणी छे । तिवारे भाइ गुलाबराय बोल्या - आप तो आत्मार्थि हो । कुछ विचार के कहेते होवोगे । परंतु हमारे कों बूटेरायका तो संसा नही ।
तुम्हारे कहणे के 'लेषे बूटेराय मिथ्याती हे । हमारे कों तो तुमारा संसा हे । तुम बूटेराय को पहिले गुणठाणे कहेते हो । पहिले गुणठाणे ते हेठ कोइ गुणठाणा नही । तुम तो बूटेरायजी से कुछ हेठ ही हो । तुमारे कुं कहो केणे गुणठाणे सद्दीए । सो कहो । इत्यादिक बातां मेंनें कुंजरावाले के भाइ गुलाबराय के पासो सुणी छे । तत्त्व तो ज्ञानी जाणे तथा चरचा करणे वाले जाणे । मैंने तो उसके पासो आप सुणी नथी । इत्यादिक घणी वारताइ चरचा होइ चौदा पंद्रा दिन परंतु अंबरसिंघ की बात कुछ श्रावका नें मानी नही । पिछे अंबरसिंघ कुजरावाले तें विहार करकें पपनाखे तथा किल्ले गया । इहां हमारी सरधांन खोटी दरसाय के पीछे रामनगर में गया । उहांबी हमारी सरधा पोटी दरसाय के स्यालकोट जाय कें चौमासा कर्या । पीछे हमबी पपनाखे को वीहार कीया । उहां के भाइया नें हमारे साथ चरचा करके कुंजरावाले की परे हमारी वात प्रमाण करी तथा कील्ले के भाइयानेबी चरचा करके हमारी बात प्रमाण कर लीनी । फेर हम रामनगर में जाइ कें चौमासा कीया । उहां का भाइ मानकचंदजी शास्त्री पढ्या होया था उहांके भाइ बोले स्वामीजी । मानकचंद मानेगा तो हम सर्वत्र मान लेवांगे । मानकचंद बुद्धिवान हे । इस वास्ते फेर हमारी अरु मानकचंद की चरचा होणे लागी । केतलेक दिनें मानकचंद प्रतिबोध पाम्या पीछें सर्वत्र नें बात मान लेइ । तिवारे चौमासे मध्य रामनगर का भाई दिलबागराय स्यालकोट आपणे सासरे गया । उसको अमरसिंघ तथा सुदागरमल्ल दोनुं कहणे लागे - तुम चौमासे उठे बूटेराय कों तथा और भाइया को साथ लेके स्यालकोट आवो । तुमारी सरद्धा फक उडि जावेगी । “तिवारे दिलबागराय
१. हिसाब से । २. कौन से । ३. तरह । ४. तुप की तरह अथवा भस्म की तरह I
५. उस समय ।
मोहपत्ती चर्चा * १०