Book Title: Muhpatti Charcha
Author(s): Padmasenvijay, Kulchandrasuri, Nipunchandravijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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धनकमावनको गया था । उस लुगाइको किसेने जूठ आणके कह्या - बाइ तेरा भरथार मर गया । तिवारे तिस लुगाइने तथा और परिवारने सोग घणा करया । परंतु काल पायते सोग छोड दीया । आप आपणे व्यवहारमें लग गये । इम करतां पंच दस बरस व्यतीत होय गये । भरतार तो धन उपारजदा है अरु तिस लुगाइने रंडवेस पहर लीया है । ते नीत प्रते रोवे छे । उसको भरतार भूले नहि । तिवारे काल पायके उसका भरतार धन कमायके आपणे शहिरमां आया । आवी बाहिर बाग मध्ये उतरया । तिसने आपणे घर नोकर पुरुष भेज्या । तिणे जइने उसके हाथकी लिखत देइ तीनोने सर्व वृतांत जाण्या । तिवारे मरेकी बात जूठि थइ । तीनाके घरमें शादि होइ तिसके सर्व संबंधि कहे - सुंदर हमारा संबंधि सुखे घर आया । तिवारे तीनाको घणा आनंद होइ सादी होइ तिवारे तिस लुगाइको सासू बोली - बहु ! तुम स्नान करके गहणे कपडे पाउ सोग दुर कर । तेरे भागते तुमारा भरतार सुखे कमाइ खटके घरे आव्या है । धन्न तेरे भाग । तुम बडे भागवंत हौ । तिवारे बहु वोलि हाथ जोडके - सासूजी ! तुम कहो ते सर्व सत्य छे परंतु मेरा दस वरसका रोया पीटया कहां गया ? तिवारे सासू बोलि-वहूजी ! एह तो तुमे तथा हमे भूलमे रोय पीटे । ते जाणके अब तुमाने काहेको याद करणा है ? बुद्धिवंत होवे तो एसी भोली बात काहेको कहे ? कदाचित् भूलमें कहे तो समजावी होइ समजे तेवी भली है । जेकर समजावी होइ न समजे तो मूढ छ । मुरख छ । निपट निटोली छै । अजोग जाणवो । एह दृष्टांत उतारना ।
वीतराग के वचन जाणी बुजी अंगीकार नही करे ते अजोग जाणवो । तेतो अभिनिवेसक मिथ्यातना धणी जाणके जूठ बोले तो बहु संसारी जाणवो । तथा कोइ वीप्रीत कर्म जोगे धारणा होइ - उलटी विचारना होइ गइ । दोय चार पेढियां वदीत होइ गइ या कीसेने विचार नही किधि- धकाधकी समाचारी बन गइ । तिवारे किसको पुन्य जोगे उस समाचारीकी खबर पड गइ । पीछे फेर बी छोडे नहि । धीगाधीगी धक्काधक्की करे । परंतु जाणके वीतराग के वचना थकी उलटी परुपणा करें । आपणे वडे वडेरया के मोह करके वीतराग के वचनाको धक्के । आपणे १ अवुझ ।
मोहपत्ती चर्चा * ६३

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