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दुप्पस अणगारे ताव णं गछमेरा ऽऽऽऽऽऽऽऽ ऽऽऽऽऽऽऽऽ नाइक्कमेयव्वा ॥
इहां इम कह्या- श्री दुप्पहसूरी लगे सुद्ध समाचारिके परूपक पुरुष रहेंगे । दोइ प्रकार के होयंगे- एक तो गीतार्थ- पोते पंडित, आत्मार्थि, भवभीरु पूर्वाचार्या की समाचारि का जाणकार होवे तथा एहवें भगवंत के चरणा का सेवक - आज्ञाकारी होवे । तीना पुरुषांको गछ मर्यादा की खबर होती है । परंतु सर्व मूंडितको मर्यादाकी खबर नथी पडती ।
तथा पूर्वे पाठ लिख्या है तिस पाठको लगदाइ पाठ छे - हे गोतमः ! जोणसे आसातनाते नहि डरते । उन्मार्ग में प्रवर्त्तके गछवासी कहावदेहे । तथा परम्पराय रहित गछ बनाय लेवेगे । स्वछंदचारि समेके प्रभावते लिंगोवजीवी प्रतिबंध करी एक खेत्रे वास करेगे । तथा अफासू आहारपाणि भोगवेगे जाव साहूवेसुज्झीय अन्नवेसपरिवत्तकयाहिंडणसीलं इत्यादिक घणो दोष कहे । महानिशीथ अंगचूलीए वंगचूलीए मध्ये जिणें देखणे होवे ते देख लेज्यो । इहां मैने थोडेही लिखे है । इत्यादिक चिन्ह देखके मर्यादाकें उलंघणहार जाण लेजो । श्रुतज्ञान विना न जणाय । राग द्वेष अज्ञान छोड के एक वीतराग के वचना की परतीत करे तो जणाय ।
केइक इम परुपदे है महानिसीथ अंगचूलीया वंगचूलीया एतो दुजाने बनाया है । मूल के नथी । तुमाने किम जाण्या ? एनामे वीप्रत मत नीषेदा है । तो और सूत्रामें वीप्रत मत की स्थापना करी हे ? ते बतावो । चार प्रकार के आचार्य कहे हे । इना विचो जौणसा साल समान भंगा है सो तीर्थ है । और नाममात्र जैनलिंगमात्र जैनी हे । तो भोगवती के साथी हे । चंगा चोखा ते खाते पीते हे । तथा पहनत है । तथा भोले केइक गुरु करके तीनाको मानते है । ते पिण गुरां का मद मनमें राखते है ते पण आणंद मानदे है । परंतु ज्ञानीने तो तिनाको इसलोक परलोकमां दुःखीज कहे है । विषकी तरा निंदनीक कहे ।
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शिष्य कहे स्वामी ! एतो सर्व इकठे मिले होये है । इनाकी पिछान कीम पडे हे ? शिष्य ! इनाकी पिछान करनेवाले २१००० वर्ष रहेगे परंतु विरले पुरुष है । इसमें संदेह नथी परंतु ते पुरुष मोटे भागते मिलते है । मिले तो पिण जिसको तिसकी पिछाण होवे तो
मोहपत्ती चर्चा * ६९