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परघरे धर्मने जोतां फिरो छो पिण निजघर पोताना घर मांहेथी धर्म नथी पामता जिम न जाने कस्तुरी मृग पोतानी नाभी मही मृगमद कस्तुरी तेहनी गंध प्रते मृगमद क. कस्तुरी तेहनी परमल नो मर्म न जाणे २ जिम ते कस्तुरीओमृग वनमांहे दिसे दिश फीरे स्युं करवा लेवा स्यां प्रते मृगमद कस्तुरी तेहनी गंध प्रते
तिम जगमांहि बाहिर धर्म अर्थि अन्य ठामे धर्म ढुंढे जे बाह्य दृष्टी मीथ्यादृष्टी अंधछे ते पिण विप्रायसी आत्मा ज्ञानमांहि न रमे ३ जा. जातिअंध जे होय तेहनो दोष आकरो नथी जे माटे जिहां अर्थ होय तिहां न देखे वली मीथ्यादृष्टी तो छती आंख छे पिण जाती अंधथी अती आकरो छे ए पदनो अर्थ मीथ्यात्वना दस भेद वखाण्या धम्मे अधम्मसन्ना १ अधम्मे धम्सन्ना २ मग्गे उमग्गसन्ना ३ उमग्गो मग्गा सन्ना ४ साधुअसाधुसन्ना ५ असाधु साधुसन्ना ६ अजीवे जीवसन्ना ७ जीवे अजीवसन्ना ८ अमुत्ते मुत्तसन्ना ९ मुत्ते अमुत्तसन्ना १० ए दस प्रकारे मीथ्यात्व जाणवो अर्थने अनर्थ करी माने ए लिख्या छे मीथ्यादृष्टीनां लक्षण कहेछे आप प्रसंसे पोताना आत्मानो उतकर्ष परगुणने ओलवे किस्युं दोस काढीने पोताना गुण आगल्याना गुणनो लेस लगार मात्र न धरे वली मीथ्यादृष्टी जीनवाणी क. वीतराग वचन श्रवणे क. काने न सांभले जे उपदेस दीये मीथ्यात्व कलित दिये थोडं जाणे तो घणुं फुली छलबलीओ हुये ५ जीव तुं ताहरूं तूं मीत्रछे स्थु बाहिर मीत्रने वांछे छे एटले आत्मा स्वभावमें सर्व मीत्रजछे जेहने सद्गुरु रूप सूर्य ज्ञान प्रकाश जे पुरीसा तुममेव मीत्रं तमं किंबहिया मीत्रमीछसी इत्यादि आचार्यांग अर्थ वाख्यान रूप कीरणे करी मोह तिमर क. अंधकार पोताना आत्मामांहि जिनधर्मनी सत्ता देखाई ते केवी छे ते .कहे छे चीदानंद क. ज्ञानसुख तिणे करी भरपूर प्रथम समकित पामे तेहनें नष्ट नेत्रनी प्राप्तिना आनंदथी अनंत गुण अनंत ६ जिम क. रत्न नीरमलता ते फटकनो स्वभाव छै उपाधि विरहे प्रगटे ति. कषायादि अभावे प्रगटतो स्वभाव छे ते. ते जिनवीरे वर्धमान स्वामीयें प्रकासीओ कहयो छे प्रबल जे कषाय तेह नो जे अभाव प्रबल पदे मंद कषाय पीण धर्म लाधो ७ जिम ते सफटिक रतन राते फुल पासे छते रातड दिसे स्यामफुल पार्श्ववर्ति छते स्याम रंग दीसे तिम जगजीवने पुन्न पाप रूप द्रव्य कर्म उपाधि छे तिणे रागद्वेष परिणाम
८८ * मोहपत्ती चर्चा