Book Title: Muhpatti Charcha
Author(s): Padmasenvijay, Kulchandrasuri, Nipunchandravijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 187
________________ इत्यादिक तुम्हाने आपणी परम्प्रायकी महिमा करी अरु प्रभुकी परम्प्रायकी निंद्या करी । आप संयमी थया अरु श्रीमहावीरजीके तीर्थ के साधांको असंयमी थापे । परंतु मेरे को जिम भासता हे तिम लिखीए हे - प्रथम तो ग्रहस्थ सूत्र वाचणेका अधिकारी नथी । तथा साधूने दीक्षा दीए पीछे तीन वर्ष व्यतीत होय जावे तिवारे गुरु जोग जाणे तो आचारांगकी वांचणी देणेकी वीतरागे आज्ञा दीधि छे । व्यवहार सूत्र मध्ये जोइ लेज्यो । आपणे मेले सूत्र वांचके तिसको चोमासीक प्रायश्चित कह्या छे । तुम कहेते हौ - लौंकने आपे सूत्र वांचके धारणा कर लेइ । एह बात सूत्र विरुद्ध दीसे हे । तथा तुम कहेते हौ - संघवीने पैताली जणाके साथ गुरु विना अपणे मेले दीक्षा लीधी ए पण सूत्र विरुद्ध । तथा लौकागछ वोसरावी कीसे गुरुके पास दीक्षा नहि लिधि ए पण सूत्र विरुद्ध । एतो तुमारेइ कहण मुजब तुम्हे आपापंथी थये । इसमें संदेह नथी । तीमज अंगचूलीए वंगचूलीएमें बी लिख्या हे । एह वातका निरना जब होवे तव दीर्घ ज्ञानमें दृष्टी देके देखे । तव साच झूटका निरना होवे । मिथ्यादृष्टी इसका निरना नथी कर सकता । परंतु समकितीको तो इस बात का निरना करना चाहिए । श्री जंबूस्वामी पीछे तिन चारित्र विच्छेद गये ते लिखीये छीए - परिहार विशुद्धी चारित्र१ सूक्ष्मसंप्रायचारित्र २ यथाख्यातचारित्र ३ ए तीन चारित्र तो पंचमे कालमे भरत क्षेत्रमे किसे मुनिके पास नथी । तथा छेदोस्थापनी चारित्र श्रीभगवती सूत्र मध्ये शतक २५ उदेसा ७ मे कह्या छे - छेदोस्थापणी चारित्र तीर्थ मे होवे । तथा जिणसासणमें आपणी मेले दोय दीक्षा लेते हे - तीर्थंकर तथा प्रत्येकबुद्धी । तीनो के छेदोस्थापनी दीक्षा कहि नथी । सामायक चारित्र जावजीवका अंगीकार करते हैं । तीर्थंकर छदमस्थपणे तीर्थ प्रवर्तावे नहि । केवल पाया पीछे शिष्य शाखा करते हे । परंतु प्रत्येकबुद्धी तो आपणी नेसराय शिष्यको दीक्षा देवे नही । एह हुंडा नाम उसरपणीके प्रभावते उलटी याउलीया बातो होतीया हे । जिणसासण की इसी रीत दीसे हे - जे मुनी गुरु समीपे दीक्षा लेवे हे ते मुनि बीजाने दीक्षा देइने आपणी निसराय तथा बीजाकी निसराय दीक्षा देवे इम संभव होवे हे । आगे बहुश्रुत कहे ते प्रमाण । इस दुसम काल के प्रभाव केइक जिणसासनके अजाण भोले जीव आप मुंडत हूए । एतो मोहपत्ती चर्चा * ७५

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