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गरु संजोग पावे तो पावे पिण पावणा दोहेला हे । जौणसा कोइ जीव समकित सहित होए तथा अणुव्रत तथा महाव्रत संयुक्त होए । आपकों प्रत्यक्ष मिले । उसकी जथाजोग विनें न साचवें न करे जाण बुझके तो समकित मलिन थाय तथा मूल ते जाय ।
कोइ कहे मेरे को तो खबर नथी पडती । तेतो खरो, पिण तेरे को अपणी खबर पडती हे के नथी पडती ? ते कहो । तिवारे बोल्या- मेरे को तो अपणी खबर नथी पडती- में समकिती हां के मिथ्यातीहां ? हे आर्य ! तेरे को आपणी समकित कि खबर नथी पडती तो बीजानी तेरे को खबर किम पडे ? तेरे को खबर नथी पडती तो राग द्वेष छोडके मतकदागरीया का पखपात मूकी आत्मार्थी थइ भले धर्म अर्थी पुरुषा का संग कर । सूत्र पढने की खप कर । जब तेरे को ज्ञाननी प्राप्ति होएगी तब जाणस्ये । वीतरागे कह्या हे जो ॥ अप्पं जाणइ सो परं जाणइ ।। इति वचनात् । गाथा- जे जे अंसे रे निरपाधिकपणो, ते ते जाणो रे धर्म । सम्यग्दृष्टी रे गुणठाणा थकी, जाव लहें सिवसर्म ॥ श्री सिमंधरसाहेब सांभलो ।। दुहा ।। गुण जाणो, ते आदरो अवगुणथी रहो दुर ए आज्ञा जिणराजनी एहिज समकित मूल १ समभाषी गितार्थनाणी आगममांहि लहीएइरे आत्म अरथी सुभमती सज्जन कहो तेविण किम रहीइरे १ इति वचनात् साढेतीनसेके स्तवन की ढाल ६ गाथा ९७ । विषयरसमां गृही माचिया नाचिया कुगुरुमदपुररे धुमधामें धमाधमचली ज्ञानमारग रहिओ दुर रे । सवासो के स्तवन की पहिली ढालनी गाथा ७ श्री जसोविजयजी के स्तवन मध्ये जोइ लेजो ।
फेर मेने विचार्या-ए बडी आश्चर्य की बात हे - सूत्रमे तो किसे जागा जैन के यतिको मुख बांध के विचरना कह्या नही, अरु मुख बांधणेमें कोइ गुण बी नथी दीसता, परंतु मुख बांधणे मे अनेक अवगुण हे - लोक हसते है पशु डरते है, कुत्ते भौंकदे है, पंचिंदीया की वधका कारण है, प्रभु की आज्ञा नही इत्यादिक घणे अवगुण है । एसा अकार्य करणा जैन धर्मिको जोग्य नही । एह तो अनर्थदंड दीसे छे । अनर्थ दंड तो श्रावक को बी वा है तो साधु किम करे ? जौणसे पंडितराज है ते तो सर्व जाणते है । तिनाको मै उपदेश करणे को क्या समर्थ हां ?
मोहपत्ती चर्चा * ५१