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श्री वीतरागाय नमः
मुहपत्ति के साक्षी पाठ
સાક્ષીપાઠ - ૧ વિપાકસૂત્ર અધ્યયન ૧
ततेणं से भगवं गोयमे मियं देविं पिट्ठओ समणुगच्छति, तत्तेणं सा मियादेवी तं कट्ठसगडयं अणुकद्दमाणी २ जेणेव भूमीघरे तेणेव उवागच्छइ २ ता ॥
चउप्पडेणं वत्थेणं मुहंबंधमाणी भगवं गोयमं एवं वयासी तुब्भेवि णं भंते ! मुहपोत्तियाए मुहं बंधह ! तते णं से भगवं गोयमे मियादेवी एवं वृत्ते समाणे मोहपोत्तियाए मुहं बंधइ २ ता ।
जेकर गौतमस्वामी का मुख को मुखपत्ती बांधी होइ थी । तो दूजी मुखपत्ती कौणसी थी जोणसी गौतमस्वामीने मृगावती राणी के कहेसेंती मुख को बांधी । चौदा उपगरण में मूखपत्ती तो एक ही उपगरण का है । सो तुमारी सरदा लेखें तो पहीली मुखको बंधी होइ थी बांधी होइ को फेर क्या बांधणा था ? तिवारे मत का मतवाला बोल्या इहां तो मुख बांधणे का कुछ काम नही था । मुख को दुरगंध नहिं आवदे, दुरगंध तो नाक को आवदी हे तीस वास्ते नाक बांध्या है । उत्तर - तुमारे कह के लेखें तो गणधर चुके, कीस पास्ते बांध्या नाक अने लिख्या मुख ते प्रत्यक्ष विरुद्ध है । परंतु श्री गणधरजी महाराज परम उपयोगी अधिका उछा किम कहे ? गले ते उपर सारे का नाम मुख है । जेकर मुख बांध्या होया होता ते श्री गणधरजी महाराज मुख बांध्ये होय कों फेर मुख बांध्या काहकु आखदे ? मुख खुला था तो मुख बांध्या का । मुख बांध्या तो नाक बी बीचें बांध्या गया । इसमें क्या संदेह है ? परंतु श्री गुरांकी कृपा वीना सीधांत का रहस्य जाण्या जाय नही । इस काल में गुरु का जोग मिलणा दुर्लभ है । गुरु विना ज्ञान नही । ज्ञान विना समकित नही । समकित विना तत्त्व विचार नहि । तत्त्व विचार बिना मोक्ष नहि । मोक्ष विना सासता सुख नही । इम जांणी समकीती गुरु होवै तेहनी सेवा करो ।
शिष्य कहे स्वामीजी । समकिती तो सर्व ही कहावदेही । मेरे कों समकीती मिथ्यात्वी की खबर किम पडे ? गुरु कहे हे शिष्य ! निश्चै मोहपत्ती चर्चा * 9