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छेदोपस्थापणी दीक्षा दे छै । तथा दोनो पास दीक्षा लेते है । तीनाको एसी बीचार नही आवदी- इना विषे सयलिंगी कौण छे ? तथा अन्यलिंग कौण छे ? इना दोनो में किस को छेदोपस्थापणी चारित्र छे ? तथा किसको नहि ? ते उपर चरचा लिखीए छै
भगवतीसूत्रे सतक २ उद्देसे ६ नियंठे कहे छे तथा उद्देसे ७ में कह्या छ- संयमके प्रथम द्वार मै कहे छै- छेदोपस्थापणी चारित्र थीतकल्पी साधुमें होवे सो थीतकल्पी साधु दो तीर्थंकराके वारे होता है पहिले-छल्ले तीर्थंकरके वारे होवे, परंतु स्वयंबुद्धि तथा प्रत्येकबुद्धिमें छेदोस्थापणी न होवें । तो ओर किसमें होवे ? अपितु न होवे । ते खरों । तथा आठमें द्वार मै कहया छै छेदोस्थापणी चारित्र तिर्थमें होवे अतिर्थ में न होवे ते पिण खरो । तथा नव में लिंगद्वार में कह्या छै छेदोस्थापणी चारित्र द्रव्यलिंगे आसरी तिनो लिंगमें पावे । इस बात का मेरे संदेह छ- ते साधु कौण छै ? जोणसा १नाले अन्यलिंगी छे २नान्यतकल्पीत छे तथा गृहलिंगी छै तथा तीर्थमेछे । ते कृपा करके कहो । मेरा संदेह टालो । एसी सीष्यकी संका टालणे के वास्ते गुरु सूत्रकी साख देके शीष्यका संदेह छेदे छै ! भो शिष्य ! तुम सुणो ! इस बात का निरना व्यवहार सूत्र के पहिले उद्देशे प्रथ ३१ मध्ये पाठ छै ते लिखीए छै ।। भीखु य गणाउ अवक्कम परपासंडपडीमं उपसंपज्जित्ताणं विहरइ से य इच्छेज्जा दोच्चंपि तमेव गणं उपसंपजित्ताणं वीहरीत्तए नत्थि णं तस्स तप्पतीयं केइ छेदे वा परिहारे वा ननत्थ एगाए आलोएणाए ।
श्री० साधुगण थकी नीकली राजादिकने कारणे परपाषंडीनो वेस अंगीकार करीने विचरे तेहने अनेरो कारण कोई छेदचारित्रनो तपपरिहार नथी एक आलोयणा प्रायछित आवे । सयलिंगकी अपेक्षा गृहस्थका लिंग बी परलिंग छे ते पिण उपलक्षणथी जाण लेणा । तथा षट् दर्शनमें ब्राह्मण सगृहस्थलिंग छै । इम तिना लिंगमें छेदोस्थापणी चारित्र होवे । तथा जे कोइ पंचमें कालमें गृहस्थ अपणे मेले वेस लेइने मुंडत थइने २ आखदे है-अमे छेदोस्थापणी चारित्र आप लीया छै । तथा शिषांको देवे छै ते पुरुष सूत्रका प्रमाण जोता उत्सूत्र भाषी दीसे छै । इसमें संदेह नही ।
१ एक ही साथ । २ कहते हैं ।
मोहपत्ती चर्चा * १५