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तिर्थंकरादिक आचार्य उपाध्याय साधु साध्वी श्रावक श्राविका सम्यग्दृष्टी तेतो कोइ वीरला पुरुष कहा छे ।
परंतु जैसा जैसा मत छे तथा जैसी जैसी जीसकी बुद्धि छे तो खोजी बणके तथा नरमाइ करकें पुछे तो ते पुरुष कहा देवे छे तत्त्व विचारी जीवको अंसे अंसे गुणकी प्राप्ति होणे का कारण दीसे छे ।
तथा मतीतो अपणे २ मतमे खुता छे । उसको तो सच्च जूठकी कुछ खबर नथी पडतीं । सो मती तो इंना देसां के सर्व देखे । घणे तो आपणे २ मतकी स्थापना करते दीसते हें । कोइ वीरला जीव शुद्ध परुपक पिण होवेगा इण खेत्रे । तथा भरतखेत्रमें ओर खेत्रे होवेंगा । परंतु किते सुणनेमेंतो नथी आवता । तथा कोई इना मता के विषे होवेंगा तो ज्ञानी माहाराज जाणे । जिम कमलप्रभाजी माहाराज श्रीमहानिशीथ के पांचमे अध्येयन मध्ये तिसको भावाचार्य कह्या हें । उसके साधर्मी धर्म रहित कहे हें । उनां के बीच कमलप्रभ आचार्य रहे था परंतु वीतराग की आज्ञा उलंघता नही था । ज्ञान दर्शन चारित्र का जतन करता सुखें २ धर्म करता था । तिस कालमें अच्छेरा वरत रह्या था । उसके मन में इसी बात आइ ए जीव कुमारग चालें हें । तिनाको में भला मार्ग बताउ तो ए जीव संसार समुद्र तरें । मेरा ज्ञान सुफल होवें । तथा मेरे को घणी निर्जरा होवें
पखंडीया कमलप्रभाने च्यार गतिमें रुलाया ए व्यवहारनी व्याख्या छे । किस वास्ते खोटे निमित्तते खोटी प्रवृत्ति जीवनी होय जाति हैं । इस वास्ते खोटे निमित्तते दूर रह्या जोइए । तथा जो कोइ दिढ 'सगतिवंत होवें तिसको कुछ भय नथी । ते तो खोटे निमित्त में पिण कारज सिद्ध कर लेवे छे । इस में संदेह नही । तोपिण खोटे निमित्तते दूर रहणा जोग छे । पण असुभ निमित्तनी स्थापना करी न जोइये । सूत्र जोता तो कमलप्रभा आपणे प्रमादने संसार में रुल्या ।
लिंग लिंग गणीया तथा तिणके सेवक आदिक निमित्त मात्र कमलप्रभा को रुलावने के कारण जणाते हैं । पिण आत्मानी सुध परिणत थइ तो संसार परत कीया । तथा शुभ जोग वर्त्या तो तीर्थंकर १ शक्तिमान् ।
मोहपत्ती चर्चा * २५