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होवेंगी । आगे तिसके 'प्रनामाकीतो ज्ञानी जाणे । एकतो एह कारण आवी ढुंक्या । बीजा कारण बण्या ते लिखिए हैं-फेर में चौमासा उठे पीछे राजनगर के बहार एक हठीसिंह की वाडी हे उहां जाय रया । तिहां एक बाइको दीक्षा देणी थी । मेने बी सुण्या-इहां कलको दीक्षा देवेंगे । आगे बी मे सहर मे आहार पाणी करने को जावा था । कदेक मुलचंद तथा बीजा साधु आहार पाणी तिहां पिण दे जावे थे । तब मेने जाण्या-में सहर मे चाल्या जावागा । थोडासा दिन रहेगा जब आवागा । जब दीन चड्या तब मूलचंद अठारा उनीस साधा को साध लेके मेरे पास आय गया । जब में सहर में जाणे लगा तब मूलचंदजी मेरे को बोल्या-तुम सहर में काहे को जाता हां ? तुम इहाइ आहार करज्यो । मेने मूलचंद को कह्या-इहां दीक्षा देणे को आवेगे, मेरे को बुलावेगे में जावांगा तो कोइ चरचा चालेगी तो 'सम होणी नही । इस वासते में सहर में जावागा । फेर थोडे दिन रहेते इहां आय जावागा । मेरे को मूलचंद बोल्या-तुमारे को कोण बुलावणे आवेगा ? दीक्षा देके चले जावेगे । मुलचंद के कहेते में तहां रह गया । तब दीक्षा देणे को रतनविजेजी तथा मणीविजेजी आये दीक्षा देणे की वेला हमारे को बुलावणे
को आय । तब मूलचंद मेरे को बोल्या-तुम चलो उहां कोणसी चरचा करनी हे ? तिसके केहेते में तथा ओर मूलचंद आदिक सर्व साधु तिहां गये ।
जौणसी बाई दीक्षा लेणेवाली थी ते साधा की रुपइये चडाय के पूजा करने लागी । पिण आगे तो दीक्षा में रूपइये लेणे की संवेगीया की रीत नही थी । एह रतनविजेजी पन्यासने रुपइये चढावणेकी नवी रीत काढी । प्रथम तो रुपइये चडाइने रतनविजेजी की पूजा करी । फेर मणीविजेजीनें आगे रुपइये चडाइने पूजा करी । पिछे मेरे को रुपइये चडावणे लागे तिवारे नितिविजेजी बोल्या- हमारे आगे रुपइये चडावणेका कुछ काम नही । हमारे रुपइया की खप नही । इम कहीनें मनें 'करदीने । तिवारे हम सवे तहांते उठके चले आय । पिछे तिनाने बाइको दीक्षा देकें सहरमे चले गये । मेरे को सिद्धाचल की यात्रा करने को जाणा था पिण मूलचंदजी प्रमुख साधु तथा श्रावक कहण लागे- स्वामीजी ! अब तो टाड घणी पडती हे, जलदी मत करो । जरा खुले दिन आवणे देवो । १ परिणामो । २ समाधान होगा नही । ३ मनाई कर दी ।
मोहपत्ती चर्चा *
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