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कालें अनंतमी चोवीसीने विषे दस अछेरा थया । श्री धर्मरिसिनामा चोवीसमा तीर्थंकर निर्वाण गया पीछे अनुक्रमे केतले कालें असंयतियाका अछेरा हूया । इसि पाठ ते एही संभव होवें छे - श्रीमहावीर निरवाण गया पिछे असंयीतयाका अछेरा हुया संभवे छे । परंतु मेरे को तो इम भासें छे जो अतीतकाले हुंडा अवसरपणी में चोवीसमें धर्मरिसि महावीर सरीखा तीर्थंकर थया छे । तिसके तिर्थ में सात अछेरा कह्या छे । तिसके निर्वाण गिया पिछे असंयतीया की पुजा होइ । नाम मात्र मुंडे अणगारे नाम मात्र आचार्य तथा उपाध्याय तथा साधुनाम धराइ पुजायेते आप डुबे ओर जीवा को संसार में डुबाया ।
तिम इस काल में श्रीमहावीर पीछे अछेरा हुया संभवे छ । प्रत्यक्ष छकायका आरंभ करें करावे छे तथा अणुमोदे छे । पांच महाव्रत पिण उचरे छे । तथा डोली चडे हे, तथा म्याना विषे, तथा पालकी, तथा गाडी, तथा घोडे, तथा रेल आदिक विषे कोइ चडे हे । कोइ नही चडे हैं । पिण माहोमांहि गुरु शिष्य कहावे हे । वंदणा नमस्कार करें हें । तथा कोइ धन पोते राखे हे । कोइ ज्ञान का नाम लेइ ग्रहस्थ कने राखे
। कोइ दीक्षा लेण लागे हे तो ग्रहस्थने इम कहे हे- में दीक्षा ले के जोग वहाग्रा तथा किसे देस प्रदेस विषे विहार करना होवेंगा तब तेरे पासते लेके जौणसा मेरे को जोग वहावेगा तथा मेरे साथ पुरुष चलेगा उसको में तेरे पासो रुपये लेके देवागा । तथा तीर्थ जात्रा करागा इत्यादिक धर्म ठेकाणे खरचांगा । तथा कोइक संवेगी नाम धरावे हे शीलवंत कहावें हे अरु सिद्धाचल तथा ओर तीर्था की जात्रा जावे हे । जहां धर्मशाला आवे हे तिहां उतरे हे एक दिन तथा चौमासा करे हे । ताहां बायडी तथा भाइया तथा साधु साध्वी भेले रहे है, तथा सामायक पडिकमणा भेले मिलीने करे हे । दीवे बाल के रात्र को कथा करे हे तथा सुणे हें । साधु नाम धरावे हे । वीतरागे तो तेउकाया शस्त्र सर्व दिस वि दिस विषे जीवा की घात करे हे एसा कह्या हे । फेर कहे हे-हमे तो धर्मका उपदेश देवे हे, घणे जीव सुणके धर्म में दृढ होवे हे, धरम का घणा उद्योत होवे हे । दीवा बालीने शास्त्र पढे तो ज्ञान की वधोत्री होवे, निंद्रा ना आवे, प्रमाद छुटे ए अछी बात हे !
वीतराग की आज्ञा लोपीने धर्म सरदेहे इम कहे हे उसका बुद्धिवंत
मोहपत्ती चर्चा *
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