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की सरधा आज्ञा है । जिहां वीतराग की आज्ञा नथी तो धर्म किम होवें ? तेह बुद्धीवंत को जाणवा जोग हैं । तथा कर्म जोगे आज्ञा ते विपरीत स्थानक सेव्या होय तथा सरधा होय ते विपरीत वस्तु आचरवा जोग नही । जेकर कर्म जोगें नही छोडी सकें तो खोटी जाणे, छोडण की अभिलाष राखें । धन दिन होवेगा जब देव गुरु की आज्ञा में चालसुं । ए भावना भावे ते पिण कल्याण का कारण हे । श्री वीतराग की आज्ञा बाहर सरदना फरसना परुपणा सम्यग्दृष्टी को छांडवा जोग हे । प्रायश्चित का स्थानक हे । जिन - आज्ञा बाहर धर्म कदाचित नथी । परंतु जिन आज्ञा का बोध होगा दुर्भल हे । पिण जिसको बोध होया हे तिस को मेरी त्रिकाल वंदना नमस्कार होजो । मेरी बुद्धि अल्प हे । जिम ज्ञानी कहे ते प्रमाण । परं जो कोइ खोटीयां अजोग विपरीत उकतीया जुकतीया लगाय के आपणे मत कदागरे को स्थापन करे सिद्धांत को ठेली नाखे तिसको समकिती किम जाणीये ? बुद्धिवंत को विचार करनी जोग हे ।
तथा दस अछेरे कल्पसूत्र मध्ये कहे हे तथा आचारांग मध्ये कहे हे तथा महानिसीथ मध्ये तथा ठाणांग मध्ये पिण कहे हे परंतु नव अछेरा की तो चरचा नथी किस वास्ते सर्व जैनीया की एक सरीखी परुपणा हे । तथा सिद्धांतो विषे पिण प्रत्यक्ष पाठ दीसे हे । परंतु शिष्यने कह्यास्वामीजी ! दसमे अछेरे का मेरे को संदेह हे कौणसे जिन के तिर्थ में हुवा ? ते कहो । तिसका उत्तर सुण- जौणसी वस्तु प्रतक्ष होवे तिसको अणुमान प्रमाण देणेका कुछ काम नथी किस वास्ते वस्तु प्रतक्ष दीसे है । जिम महानिसीथ में असंयतीयाका अछेरा अतीतकाले चोवीस तिर्थंकर निर्वाण गये पीछे प्रवर्त्या हे, तिम श्रीमहावीरजी निर्वाण गये पिछे होया हे । ते महानिसीथ के पांच में अध्येन में कह्या हे । तिसाई वर्तमान वर्त्तता देख लेवो । इसमें क्या संदेह हे ? तथा जे वस्तु प्रतक्ष नथी ते वस्तु अणुमान प्रमाण करके सिद्ध करनी जोइए जिम धुमथी अग्नि का निर्ना होवे हे ।
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सिद्धांत में दोय प्रमाण कहे हे- प्रतक्ष प्रमाण बीजा परोक्ष प्रमाण । प्रत्यक्ष प्रमाण के दो भेद- एक सर्व प्रतक्ष एक देश प्रतक्ष । सर्व प्रतक्ष ते केवली सिद्ध भगवान | देश प्रतक्ष अवधिज्ञान तथा मनपर्यवज्ञान । तथा
मोहपत्ती चर्चा * ४३