________________
फेर शिष्य बोल्यो- स्वामी ! तुम कहिते हो - महावीरस्वामी निर्वाण गये पीछे असंजतीया का अछेरा थया अरु टीकाकार कहे हे- सुवधीनाथजी के अंतरे मध्ये थया हे | उत्तर- तिहां तो आठ तीर्थंकरा के सात अंतर में ॥ एतेसिणं भंते चउवीस तिथ्थंकराणं कतिजिणांतरा पं० गो० तेविसाजिणांतरा पं० एतेसिणं भंते तेवीसाए जिणंतरेसु कस्स कस्स कहे कालियब्वोछिने सुयस्स पं० गो० एतेसिणं तेवीसाए जिणंतरेसु पुरिमपछिछमएसु अट्ठसु जिणंतरेसु एथ्थणं कालियसुयस्स अव्वोछेदे पं० मझिमएसत्तजिणंतरे एथ्थणं कालियसुयस वोछेदे पं० सव्वथ्थवि य णं वोछिछणे दिठिवाते ।। अर्थ- इस पाठमें तथा इस पाठ की टीकागें तो कोई दसमे अछेरे की बात नही । इहां तो चोवीस तीर्थंकरा के तेवीस अंतस्यमें दिष्टिवाद विछेद ग्या अरु आठ तीर्थंकरा के सात अंतस्यमें कालिकसूत्र विछेद गये । तथा प्रवचन सारोद्धारनी टीका में तथा किसे२ टीका में पिण एही गाथा हय । तिहां इम कह्या- आठ तिर्थंकरा के सात अंतस्यामें तीर्थ विछेद कह्या परंतु दसमो अछेरो तो भगवती की टीका में तथा मूल में तो कह्या नथी । कोई दिखावे तो प्रमाण करीए । जिम ज्ञानी कहे सो मेरे को प्रमाण हे | मेरे को हित-सिख्या देवे ते मेरा परम उपगारी हे । पिण इम तो नथी कह्या जो सुविधीनाथ के तीर्थ मध्ये असंजतीया का अछेरा हुया । तिवारे कहें - जिनाने टीका बणाइ हे तो उनाने भगवती नथी पढी होसें ? तुमारे को तिनासें घणा ज्ञान थया ? तिसका उत्तर- मेरे को तो घणा ज्ञान नथी परंतु पंडित टीका के बनावणेवाले तथा वाचणेवाले इम पिण कहे हे - ___ श्रीमहावीर के तीर्थं में असंजतीया का अछेरा कह्या हें । महावीर निर्वाण गया पिछे केतलाइक काल गया पिछे असंजतीया का अछेरा कहे हे ते लिखिएहें-आंचलीएगछवालेने ठाणांगकी टीका करी हे । दसमें ठाणेमें दस अछेरा कह्या हे । तिहां दशमें अछेरे का अर्थ कीया हे- ते महावीर निर्वाण गया पिछे हूया हे । ते पुरुष भगवती पढ्या होसे के नथी ? ते कहो.
हिवडा इक छे पंचम आरो, दसमअछेरा वली दुत्तरो । भस्मकग्रहमहिमागह गहे, विरुला कोइ मारग लहे । इणि अवसर गुरु पण दोहिला साधु कीम लाभे, सोहिला १ इति गुरु छत्रीशी तथा
मोहपत्ती चर्चा * ४५