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को विचार करी जोइए । ते जीव धर्म करीने संसार समुद्र तरे हे के आज्ञा भंग करीने संसार में आपणी आत्मा को डुंबावे हे ? इत्यादिक अनेक धिंगा-मस्ती मचाइ हे । एसा पखंड चलाया छे । तिना को मुग्ध लोक गुरु करी माने छे । एह अछेरा छे के नथी ? हाथ के कंगण को आरसी का क्या काम छे ? ते तो प्रत्यक्ष हाथ मध्ये दीसे परंतु अंधेको नथी दीसता । ते तो लाचार छे । जिसके ज्ञान रुप नेत्र नथी ते तो लाचार छे । क्या करे बापडा ?
जोणसा सूत्र तथा अर्थ वांची पढीने फेर मुग्ध लोकां को फंद मे पाडे । मेरा तो गछ अने ओर मत छे । एम न विचारे वीतरागे तो इम को छे- कोइ विरला पुरुष महाव्रत तथा अणुव्रत तथा समकितधारी होवेगा । तथा कोइ गछ वीतरागे केवलज्ञान विषे तप्पा तथा खरतरा तथा अनेरा गछ सुद्ध होवेगा अने ओर मत होवेगे इम तो कह्या नथी । तो नाम लेइ फलाणा गछ सुद्ध बीजो गछ नथी मत छे ए परुपणा केवली तथा श्रुतकेवली, दसपूर्वी बिना निरना कोण करी शके ? जिम ज्ञानी कहे ते प्रमाण । पिण सूत्र माहानिशीथ तथा गच्छाचार पयन्ना तथा ओर सूत्र का पाठ जोतां तो इना मतां की आचरना सूत्र विरुद्ध दिसे छे ते किम सद्दहणेमे आवे ? अपणे अपणे को गछ माने छे बीजेकु मत कहे छे तथा मांहोमांहि वंदना करे छे । तथा कोइक इम बी कहे हे पक्षपात मे कुछ गुण नथी सुद्ध देव गुरु धर्म की सेवा करनी जोग हे । परं कुदेव कुगुरु कुधर्म तजने की मोह कर्म के उदे जीवा को विचार नथी आवती । क्या करे ? करम वश हे । तिनके वश नथी । तथा जो कोइ जाणे पिण बाल्यावस्थासेती अनादी कालना जीवा को मिथ्या मोह वलग रह्या हे । ते वास्ते छोडी शकता नथी । तिसका दोष नथी । ते जीव अनादी मिथ्यात्वी हे तथा कीश्न पखी हे ओघदृष्टी को धणी हे तथा उसने अनंते पुद्गल परावर्त्तन करने हे । तिसको तो केवली महाराज का उपदेश पिण लागे नही । तो बीजानुं कहवुं शुं ? तथा हलुकर्मी जीव तो बादल देखके बुझ गये । तथा बेल तथा स्थंभ तथा चुडीयाका खड का तथा वृक्ष कहीये झाड इत्यादिक वस्तु देख के बुझ्या ।
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तथा तिर्थंकर तथा गणधर तथा सुद्ध पूर्व आचार्या के ग्रंथ पढीनें सूत्र की तथा ग्रंथ की शैली, नय निषेपा, निश्चे व्यवहार, उत्सर्ग
मोहपत्ती चर्चा * ४१