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पाछा उत्तर नही दीया । के 'जाणे ? केवलीमाहाराज जाणे तिना की क्या विचार हे ? जब उत्तर देवेगे तब विचात्या जावेगा । अब तो कुछ हमारा बोलणेका काम नही ।।
पिण मुखपत्तिकी चर्चा गुजरात देश में प्रगट होइ, तथा पूरवदेश में, तथा कच्छ देसमें, तथा मेवाडदेसमें, तथा मारवाडदेसमें, तथा पंजाबदेश मे । जहां जहां जिनधर्म इना देश विषे जैनो नाम धरावे हे तिहां तिहां सगले देसामें घणे लोकाको तो खबर पड़ गइ हे । कहेते हे - सर्व गछा के यति तथा संवेगी कथा करने वासते कना विषे मोरकी पिछी या घालीने छेक कराय के कना विषे मुखपत्ति पायके कथा करने की स्थापना करते हे । केइक कहे हैं - जिस के कनामें पहेली 'छेक नही होय ते पहेली कना विषे छेक करावे पिछे कना विषे मुखपत्ति घाली कथा करे । तथा कोइक इम कहे हैं- मुखपत्ति के दोनो पासे दोरी पाय के कना विषे घालीने कथा करें । इत्यादिक अनेक अपणी२ मत कल्पना की परुपणा होइ रही हे । इहां किसेका जोर नही । वीतराग माहाराजजीने कहा हे- आपछंदीए मतकदाग्रही जीव घणा होवेगे तो पिण आत्मार्थी को आगमते सुधासुध विचार करी जोइए- इना विषे कोणसी बात साची हे तथा कोणसी जूठी हे ? पिण असंयती अछेरे के प्रभावते नाना प्रकार की सरधान होइ रही हे । चालणी प्राय जैनधर्म होय रह्यो हे । 'सुधतो जुगप्रधान पुरुष बिना किसेते होय नही । पिण आगम जोइने जिहां तक आपणी दृष्ट पूर्ण तिहां तक तो समकित आदिक की सुधी करी जोइए । गाडरीप्रवाह में तो नही पड्या जोइए । एह तो असंयतीयाका अछेरा वरत रह्या हे तो पिण कोइ विरला खोजी पुरुष पिण वीतराग कह्या हे । ते तो जूठ सच की विचार करेगा । योजना करेगा । जिण खोज्या तिण पाइया । तत्त्व तणो विचार मती तो अपणे मतमें खुता हे तिसको तत्त्व विचार किम आवे ? अपितु नावे ।
अब आगे किंचित मात्र असंयतीया के अछेरे का सरुप लिखीएहे । हे भव्य जीवो ! तुम एक चित करी सांभलो । इहां सूत्रका पाठ लिखिये हे- असंयति पुजानामा दसमो अछेरो महानिसीथना पांचमा अध्ययनने विषे प्रगट कहीउ छे । जे आ वर्तमान चोवीसी थकी अतीत अनंते १ कौन जाने ? २ छेद । ३ शुद्धि ।
मोहपत्ती चर्चा * ३९