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एह प्रश्न लिखके शेठ के पास भेज दीया । शेठने तहां भेज दीया ।
तिनाने उत्तर लिख्या-मुखपत्ति शास्त्र में बंधणी लिखी हे तथा परंपराय में बंधणी कही हे तथा घरडे बंधते आयहे । तिस वास्ते हम बांधाछा । इम लिखके कागद शेठ को भेज दीया । सेठने मूलचंद को कागद भेज दीया । ____ फेर मूलचंद ने पाछा कागदमा लिख्या- एह तो तुमाने समूजे कागद लिख्या हे । इसमें तो कोइना नाम नथी । तुम 'वेउरे सहित नाम लिखो-कोणसें शास्त्र में मुखपत्ति बंधणी लिखी हे ? तथा मुख बंधणे की परंपराय किहां लिखी हे ? कौणसें आचार्यने मुखपत्ति बंधी हे ? ते लिखजो ।
फेर पिछे तिनाने प्रश्नका उत्तर दीया नही । फेर मूलचंदने दस बीस दिन लगे उत्तर माग्या पिण कुछ पाछा उत्तर दीया नथी ।
पिछे मूलचंद वृद्धिचंद तथा हमने जाण्या-जव लग जीवाकी भवतिथी परीपाक नही होइ तिहां लग जीव कर्म वस हे । तिना जीवा को केवली महाराजो के वचना की सोजी नही पडती । जिस मतमे खुता तिहां खुता । तिना जीवाकी धर्मी पुरुष को वित' वंछ्या जोइते । मानें तो अछी बात हे नही माने तो तिनोकी इछा । पिण तिनो जीवा उपर राग द्वेष नही करना । समता भाव में रहणा । ए वीतरागदेव की आज्ञा हे । एह कथा करे ! बापडा कर्म के वस हे । इना जीवाका कोइ दोष नही । सुध सताकी विचार करीए तो सर्व जीव सिद्ध समान हैं । सिद्ध स्वरुप हे । परमात्मा हे । इनाकी आत्मा मध्ये अनंत ज्ञान १ अनंत दर्शन २ अनंत चरित्र ३ अनंत विर्य ४ रह्या हे, जिम दुध मध्ये घृत तथा तिल मध्ये तेल तथा अरणि मध्ये अग्नि इत्यादिक घणी बात हे । पिण किहां लगे लिखीए ? इनाकी महिमा केवली माहाराज जाणे पिण मुखें सगली कही नही जाति । इनाकी प्रनत ज्ञानीमहाराज ने जेहवी देखी हे तेहवी ए जीव सरददे होवेंगे सो हमारे को कुछ खबर नथी । पिण हमारे को तो एही संभव होवें हे - तिनाने हमारे को कुछ
१ ब्यौरे सहित । २ हित ईच्छना चाहिए । ३ शुद्ध सत्ता का । ४ परिणति ।
मोहपत्ती चर्चा * ३८