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फेर तुम सिद्धाचल की जात्रा को जाणा । अब तो आप सहर मे चलो ।
मेरे को शहरमें ले गये । में दलपत शेठ के वंडे में जाय रह्या । फेर डेलेवाल्याने तथा लोहारकी पोलवाले तथा विमल्याने सलाह करकें भोजक फेरया । भोजक को कह्या- तुम जायके साध साधवीया तथा श्रावक श्राविकाको कहो-कलको रुपविजेके डेले मध्ये भेले होजो । तहां मुखपत्तिकी चर्चा होवेगी । मुखपत्ति कंन विध्यायके मुखपत्ति कनाविषे पाय के साधुजी महाराज कथा करे वा हाथ में लेके मुख ढांक के कथा करें । एह चर्चा डेले मध्ये होवेंगी । पिण बडे शेठ प्रेमेभाइ पास नही जाणा तथा बूटेराय दलपतभाइ के वंडे में उतरयाहे तहां पिण नही जाणा । मुलचंद को कह आवणा । ते भोजक घडी च्यार पांच रात गइ पिछे सगले साधाको कही गया । मेरे पास तो कोइ आया नही । मेरे कुछ खबर पिण नही । दलपत शेठ को खबर पड गई । तिसने शेठ के बेटे मयाभाइ को बुलाया । दोनो जणे मिल के प्रेमेशेठ के पास गये । शेठ को तिना ने कह्या - डेलेवाले रतनविजेने भोजक फेरया हें । मुखपत्तिकी चर्चा करने को कहे हे । शेठ बोल्या - ते चर्चा अपणे डेले में पडे करेंगे । हमने बी नही जाणा तथा मुलचंद बी नही जावे ।
तिवारे दलपतभाइ तथा मयाभाइ दोनो बोले- एह बात तो नही बणे । जेकर मूलचंद नही जावेंगा तो कहेगे - मूलचंद जूठा था तो नही आया । साचा होता तो इहां आय के चर्चा किम नही करी । हमको उस भोजक को बोलाय के फेर सदा दीया जोइए - सवेरे को सर्व साध साधवी शेठ की धर्मसाला में भेले होवे । मुखपत्तिकी चर्चा होवेंगी । भोजक को कह्या जे ते ठेकाणे पहेली कह्या है, ते ते ठेकाणे कहे देगा । रतनविजे के पास जाके कह देगा । आपणा - मनुष भोजक के साथ दिया । दोनो जाइ कह आय । तब तिनाने जाण्या हम तो इम पूछता था तुम मुखपत्ति कना विषे कथा में नथी घालते एह क्या कारण हें ? जेकर उये कहेंगें- हम नही पाउदे । पावणेवाले पावदे हें । इस वातकी क्या चर्चा हे ? जिस की सरधान कना विषे घालणेकी हे ते कना विषे घालते हे । हमारी सरधा कना विषे घालणे की नथी । हम नही घालते । तब उनाको हम पुछांगे- गछामें सगले मुखपत्ति कना विषे छेक कराय के घालीने पिछे कथा करते हे । ते अछा काम करते हें कें भूंडा काम करते
मोहपत्ती चर्चा * ३५
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