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आगे ज्ञानी कहे ते प्रमाण । उनाके भाव तो उनाके पास हैं । जिम होवे तिम खरे । पिण मेंने तो तपागछ धारया हैं । तपा कुगछ तो धार्या नथी । मेरी सरधा मेरे पास हे । बीजेनी बीजे पास हे । साखी वीतराग छे ।
तथा गछ कुगछ का निरना महानिशीथमे तथा गछाचारपयन्ना आचारांग आदिक सूत्र तथा प्रमाणी आचार्य तथा उपाध्याय तथा साधु महाराजो की बणाइ होइ निर्जूगती १ । टीका २ । भाष ३ चूरणी । ४ तथा ग्रंथ जोइने जोणसा गछ तथा समाचारी श्री सुधर्मास्वामीजी महाराज संघाते मिलें ते गछ तथा समाचारी आदरें तथा सरदे एह समकित का लक्षण कहिए । नाम भेद झगडा नही । प्रमार्थ जो एक गछका नाम भावे कुछ होए । समाचारी सुध जोइए । तथा समाचारी एहने कहिए-मुनी आचार का नाम समाचारी हे । मुनी आचार कोहने कहिए ? ज्ञानाचार 9 दर्शनाचार २ चारित्राचार ३ तपाचार ४ वीर्याचार ५ । ए पांच संजुक्क ते गछ कहिए । इनोते रहित तेहने गछ तथा समाचारी किम कहीए ? बुद्धिवंतको विचार करी जोइए । परंतु ज्ञान बिना न जणाय इति तत्त्वं ।
मेने गुजरात देस मध्ये चोमासे छ करे पीछें संवत १९१८ में चोमासा अमदाबाद करीने दोय साधु साथ लेकें पंजाब देश को विहार कर दीया । मूलचंद अने वृद्धिचंद दोनो गुजरात मे रहे । मैंने आवीने मारवाड में पाली चोमासा करया । फेर दील्ली चोमासा करी चोमासा उठे पंजाब मे गया । तिहां विचरया पिण मेरे भाव चर्चा करने के अल्प होइगे काल सरुप देख के । पिण जौणसा भाव ज्ञानी महाराजोने देखा हैं ते किम टले ? फेर चर्चा उठी ते कारण लिखिए है ।
संवत १९२३ के साल फागुण के महीने फेर चरचा उठी । तिसंका सबंध किंचित् मात्र लिखीए छे । पिंडदादनखादे रहनेवाला हमारी सरधानवाला देवीसहाय उसका नाम था । किसे काम के अर्थे अंबरसर गया था । तिसको अंबरसीरीए टोल्या के श्रावक बोले- तुमने अजाणपणे बूटेराय की सरधा धारी हे परंतु एह सरधा खोटी हे । तिवारे देवीसहायने तिना को कहेया तुम अब इस बात का निरना कर लेवो । जे कर अमारी सरधा खोटी होवेगी तो हम छोड देवांगे । जे कर तुमारी
मोहपत्ती चर्चा * २७