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तथा और साधु विहार करण लगे । एटले जंडयालेके भाइ आय गये । तिवारे हमनें उत्तमचंद तथा जंडयालेके भाइया को तथा जैपुर के भाइ मोतीलाल को अंबरसिंघ के पास भेजे । तुम अंबरसिंघ को जाके कहो-जेकर आपणे खिमत खिमावणां करणी होवे तो जिम बूटेराय आपको आयके खिमा गया है तिम तुम बी जायके बूटेराय को खिमा आवौ । नहि तो चर्चा करो । तुम चले कहां हो ?
इतनी बात सुणके भाइ उसके पास गय । तीस वखत ते साधु विहार करणे लगेथें । उनाके सेवक घणे बैठे थे । तिहां जाके. ओर तो भाइ कोइ बोल्या नही । जैपुरवाले भाइने जिम हम कह्या था तीमही कह्या । तब तीनाके सेवक उसकुं मारने को त्यार होय कहण लगे खिमत खिमावणां तो होय गइ । तुम साधा कों लडाते हों । इम 'रौला पाय दीया परंतु बचाव होय गया । मोतीलाल उहांते चल्या आया । परंतु अंबरसिंघने विहार न करया ।
दुजे दिन मै बाहर जंगल कों गया । तीवारे अंबरसिंघ बी हमारी गैल गया । बहार जाके मेरे को कहेण लगा-बूटेरायजी मेरे को तुमारे पास आवणे का कुछ डर नहीं परंतु लोक बडे 'डाटे है । मै तो तुमारे को वार २ खिमावताहां । मै बी खिमाय लीया । अंबरसिंघ तो आयकें उसे दिन विहार कर गया । पंच सत दिन पीछे हम बी विहार कर दीया ।
इस काल मै मतकदाग्रही जीव घणे है । धर्म के खोजी जीव थोडे है न । वादविवाद मै कोइ जीव धर्म नही पावता । उलटा कर्मबंध होता है । जीव को बोध होण होता है तब उसको खोजणा जागती है । खोजेगा तो उस जीव को धर्म की प्राप्ति होयगी परंतु मत कदाग्रह छोडके धर्म अर्थि होकें खोजेगा तो पावेगा । इस में संदेह नही । एह हमारा चरित्र अल्प मात्र तुमारे को कह्या है | विस्तार करीयें तो चरचा घणी हे । ते लिखन विच नही आवती ।।
फेर मैनें संवत १९२६ में चोमासा कुजरावाले करीने फेर में पंजाब ते गुजरात को विहार कर दीया । बीकानेर चौमासा संवत १९२७, तिहां चौमासा उठीने में अमदाबाद गया । मेरे जाणेते पहिली २ सुभागविजेजी तो काल कर गया संवत पंजाब का १९२८ का था तथा १ इस तरह हल्ला मचा दिया । २ तुफानी हैं।
मोहपत्ती चर्चा * ३२